Book Title: Terapanth ka Rajasthani Gadya Sahtiya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 15
________________ ५४० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ४७६५ ग्रन्थ -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-... १४. व्रताव्रत री चौपी पर (दीर्घ सिद्धान्तसार) १५. श्रद्धा री चौपी पर ४४१५ १६. आचार री चौपी पर ५३७५ १७. आचार री चौपी पर (लघु सिद्धान्तसार) १६४० १८. जिज्ञासा री चौपी पर १०७० १६. मिथ्यात्वी री करणी पर ३८५ २०. श्रद्धा री चौपी पर १२०५ २१. व्रताव्रत री चौपी पर १४६० २२. विनीत अविनीत री चौपी पर ८६० २३. एकल री चौपी पर २६५१ इस लघु निबन्ध में श्रीमज्जयाचार्य के समस्त गद्य साहित्य का परिचय प्रस्तुत करना सम्भव नहीं है। वे राजस्थान के साहित्याकाश में एक देदीप्यमान अंशुमाली की तरह उदित हुए और अपनी सहस्रों किरणों से राजस्थानी साहित्य को आलोकित किया । ऐसी बहुत कम विधाएँ हैं, जिन पर उनकी लेखनी न चली हो। भगवान महावीर और आचार्य भिक्षु के प्रति उनके आत्मसमर्पण ने उन्हें एक महान् तत्त्ववेत्ता स्तुतिकार बनाया तो अपनी आत्मा के प्रति पूर्णभावेन अर्पित होने की भावना ने एक महान् योगी। वे केवल शुष्क तर्कवादी ही नहीं, तथ्य की गहराई तक पहुँचने वाले सत्य-शोधक थे। अब मैं उनकी समस्त गद्य कृतियों की एक तालिका प्रस्तुत कर रहा हँ ग्रन्थमान ग्रन्थ प्रन्थमान १. भ्रमविध्वंसन १००७५ १५. छोटी मर्यादा २२८ २. सन्देह विषौषधि ७१०० १६. परम्परा का बोल (दो खण्ड) १३४० ३. जिनाज्ञामुखमंडन १३७८ १७. साधनिका १८०० ४. कुमतिविहंडन १२४२ १८. भिक्खु दृष्टान्त २४२६ ५. प्रश्नोत्तर सार्धशतक १५७८ १६ श्रावक दृष्टान्त ६. चरचा रत्नमाला (अपूर्ण) १४६१ २०. हेम दृष्टान्त ७. भिक्खु पृच्छा २६८ २१. आचारचूला (टब्बा) ७४०७ ८. ध्यान (बड़ा) १५० २२. आगमाधिकार ६. ध्यान (छोटा) ३७ २३. निशीथ की हुण्डी (विषयानुक्रम) १०. बृहत्प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध १२४८ २४. बृहत्कल्प की हुण्डी २२५ ११. झीणी चरचा रा बोल २६६ २५. व्यवहार की हुण्डी ३२५ १२. परचूनी बोल १४३० २६. भगवती की संक्षिप्त हुण्डी ४२५ १३. गण विशुद्धिकरण हाजरी ३२८७ २७. उपदेश रत्न कथा कोश ६६५६६ १४. बड़ी मर्यादा २५४ २८. प्रकीर्ण पत्र १४७८ इस प्रकार श्रीमज्जयाचार्य ने लगभग सवा लाख पद्य परिमाण का राजस्थानी गद्य साहित्य लिखा जो कि विभिन्न विषयों की छूता हुआ, पाठक के मन पर अमिट छाप छोड़ देता है। तेरापंथ के अन्यान्य आचार्यों तथा मुनियों ने भी राजस्थानी साहित्य के भण्डार को भरा है। परन्तु उनकी कृतियाँ प्रायः राजस्थानी पद्यों में हैं, अत: उनका विवरण यहाँ अपेक्षित नहीं है। ३६३ १४५ ४२५ १ जयाचार्य की कृतियाँ : एक परिचय, पृ० ४०, ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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