Book Title: Syadvad Drushti Author(s): Shivnarayan Gaud Publisher: Z_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf View full book textPage 8
________________ give aname to it. Any attempt to do more than कठिन है। ऊपर इसके केवल वर्णनात्मक रूप का स्पर्श किया गया give aname leads at once to an attribution of है / तुलनात्मक रूप में तो विषय और भी जटिल हो जाता | पर structure. But structure can be described to some वर्णनात्मक रूप के विस्तार को ही देखें तो भेद और उपभेदों, extent, and when reduced to ultimate terms it विचारों की शाखाओं प्रशाखाओं, भारतीय विचारधारा के परिप्रेक्ष्य appears to resolve itself into a complex of relations में सापेक्षवाद के प्रादुर्भाव और विकास तथा पश्चिमी विचारधारा में ... A law of nature resolves itself into a constant आध्यात्मिकता से भौतिकता और वस्तुवादी यथार्थ की यात्रा बड़ी relation. लम्बी है। हम पदार्थ का वर्णन नहीं कर सकते, हम केवल उसे नाम विभिन्न विरोधी विचारधाराओंका जैसा समन्वय सापेक्षवाद ने पद या संज्ञा प्रदान कर सकते हैं / इससे अधिक करने का अर्थ है किया, यहां तक कि अपने अनेकान्तवाद सिद्धान्त को स्वयं उसकी संरचना का उल्लेख करना / एक सीमा तक संरचना का अनेकांतवाद पर लागू करने से पीछे नहीं हटे वर्णन किया भी जा सकता है पर अन्तिम पदोंतक पहुंचने का अर्थ (अनेकान्तवादोऽप्यनेकान्तात्मकः), वैसाही प्रयास अध्यात्मवादी हो जाता है संबंधों का संकुल / ... प्रकृति के नियम का अर्थ है अनेकान्त या सापेक्षवाद का भौतिकवादी सम्बन्धवाद या सापेक्षवाद ऐसे स्थायी सम्बन्धों की खोज / से करने की युगीन मांग की पूर्ति करना ही किसी पुरातनवाद को पेवस बार्न के शब्दों में Beyond the bounds of नवीन परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने का उद्देश्य होना चाहिए। science, too, objective and relative reflaction is a पर यह किसी विस्तृत ग्रंथ का विषय हो सकता है, साधारण gain, a release from prejudice, a liberation of the लेख या रचना का नहीं / प्रसंगानुसार इसपर विचार करने का spirit from standards whose claim to absolute valicity अवसर मिला / इसमें स्याद्वाद पर लिखने की अपेक्षा सीखने का melts away before the critical judgement of the प्रयास अधिक किया गया है / लेख को लिखने में विविध स्रोतोंका relations. उपयोग किया गया है, पर प्रधानता दो ग्रंथों की है - विज्ञान की सीमा के बाहर भी भौतिक और सापेक्ष विचार स्याद्वाद सिद्धान्त - एक अनुशीलन आचार्य श्री आनन्दऋषिजी, लाभप्रद ही हैं, उनसे पक्षपात से छुटकारा मिलता है और आत्मा तथा Jaina theories of Reality and Knowledge : Dr.Y. ऐसे प्रतिमानों से मुक्त हो जाती है जिनका निरपेक्ष प्रामाणिकता का J. Padmarajan. दावा एस सापेक्षवादा के आलोचनात्मक निणय के सामन पिघल कोर्जीबस्की की पुस्तक साइंस एंड सेनिटी ने जाता (लुप्त हो जाता) है। वैज्ञानिक सापेक्षवाद को समझाने में विशेष सापेक्षवाद का क्षेत्र बड़ा विस्तृत व्यापक है, साथ ही वह सहायता की है। इतना गम्भीर व जटिल है कि उसे थोड़े शब्दों में समेट पाना बड़ा मधुकर-मौक्तिक हमारे जीवन में कई प्रकार के चक्र हैं। दुनिया का हक, बातों का चक्र, धंधे का चक्र और एक-दूसरे को आगे-पीछे धकेलने का चक्र चक्र के सिवाय और हम हैं ही कहाँ ? हमारा जीवन इन चक्रों से मुक्त होना चाहिये। इन सब चक्करों का मूल कारण है कर्म-चक्र, अतः इन दुश्चक्रों से मुक्त होने के लिए कर्म-चक्र से छूटना पड़ेगा; और कर्म-चक्र को यदि रोकना है, तो जीवन में धर्म-चक्र को अंगीकार करना पड़ेगा। यदि धर्म-चक्र हाथ में होगा तो कर्म-चक्र पीछे हटने लगेगा और फिर यह धर्म-चक्र हमारे जीवन में सुस्थिर हो जाएगा। जिसने धर्म-चक्र को पा लिया, उसे सिद्ध-चक्र तक पहुँचने में समय नहीं लगेगा और उसकी राह में कोई बाधा भी निर्मित नहीं होगी। हमें सिद्ध-चक्र तक पहुँचना है / सिद्ध-चक्र में केवल सीधापन है। वहाँ किसी प्रकार की बाँक नहीं है / सीधेपन से युक्त और चक्र से मुक्त जो स्थिति है, उसे सिद्ध-चक्र कहते हैं। यदि आप सीधेपन में आना चाहते हैं और अपने जीवन को चक्र-मुक्त रखना चाहते हैं, तो फिर जरा गौर से अपने जीवन-मूल्यों को समझते जाइये / उनको समझने के बाद आप अपना जीवन स्तर ऊँचा उठा सकेंगे और उज्ज्वलतर बन सकेंगे। -जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि मधुकर हमारा जीवन-पथ कितना लम्बा है; हमें नहीं मालूम / कितनी लम्बी अपनी जीवन-स्थिति है, नहीं मालूम | अरे, हमें तो इस जीवन का भी पता नहीं है। हमें यह भी मालूम नहीं है कि हमारा यह मूल्यवान जीवन किस प्रकार बीत रहा है. हम होश में हैं ही कहाँ ? मोह महामद पियो अनादि, भूलि आपकू भरमत वादि / हमने तो मोह की तेज शराब पीने की आदत बना डाली है और इसीलिए हम अपने आपको को भूल कर इस संसार-चक्र में व्यर्थ भटक रहे हैं। - जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि मधुकर श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण (42) मातृभूमि अरु धर्म की रखता है जो शान | जयन्तसेन जग में वह, पाता पूजा मान ||ord Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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