Book Title: Swatantrata ka Arth
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 4
________________ १२६ धर्म और समाज 1 और संकीर्ण धर्म-बलको पोषा है और उन्हें टिकाया भी है लेकिन साथ ही साथ इस शासनकी छायामें उन्हें वांछनीय वेग भी मिला है । भ्रमका स्थान विचारोंने, परलोकाभिमुख जड़ क्रियाकाण्डका स्थान जीवित मानव-भक्तिने काफी अंशों में ले लिया है । अंग्रेजी शासन कालमें तर्कवादको जो बल मिला है उससे जितना अनिष्ट हुआ है उससे कहीं ज्यादा श्रद्धा और बुद्धिका संशोधन हुआ है । ऊपरसे विचार करनेपर मालूम होता है कि अंग्रेजी शासन आनेके बाद जो नई शिक्षा और नई शिक्षा संस्थाओंका प्रादुर्भाव हुआ उससे पुरानी शिक्षाशैली और संस्थाओंको धक्का लगा । लेकिन अगर बारीकी से देखा जाय तो प्रतीत होगा कि नई शिक्षा और शिक्षण संस्थाओंद्वारा ही भारतमें क्रान्तिकारी उपयोगी फेरफार हुए हैं । परदेशी शासनका हेतु परोपकारी था, या अपने स्वार्थी तंत्रको चलानेका था, यह प्रश्न व्यर्थ है । प्रश्न इतना ही है कि विदेशी शासनद्वारा प्रचलित शिक्षा, उसके विषय और उसकी शिक्षणसंस्थाएँ पहलेकी शिक्षाविषयक स्थितिसे प्रगतिशील हैं या नहीं ? तटस्थ विचारकका अभिप्राय प्रायः यही होगा कि प्रगतिशील ही है । इस शिक्षासे और विदेशियोंके सहवास तथा विदेश यात्रा से सामाजिक जीवन में काफी अन्तर पड़ गया है, इसे कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता | दलितों और अस्पृश्योंको जीवनके प्रत्येक क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देने और उनको ऊँचा उठानेकी भावना प्रत्येक सवर्ण में दिनप्रतिदिन चल पा रही है । उसकी गति सेवाकी दिशा में चढ़ती जा रही है । अंग्रेजी शासनकी स्थापनाके बाद ही सम्पूर्ण देशकी अखंडता और एकरूपताकी कल्पना की जाने लगी है । उसके पहले सांस्कृतिक एकता तो थी लेकिन राजकीय एकता न थी । इसका सूत्रपात ब्रिटिश शासनकालमें ही हुआ है । छोटी बड़ी राजसत्ता के लिए आपसमें साँड़ोंके समान लड़नेवाले जमींदार, ठाकुर और राजामहाराजाओंको अंग्रेजी शासनने ही नकेल डालकर वशमें किया और जनताके जीवन में शान्ति स्थापित की । ब्रिटिशशासनने अपनी जड़ोंको मजबूत करनेके लिए इस देशमें जो कुछ किया है यद्यपि उसके अनिष्ट परिणाम भी कम नहीं है तो भी उसने लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया है और शिक्षा के दृष्टिबिन्दुको पूरा किया है । उसी प्रकार शिक्षण, व्यापार और प्रवासके लिए बड़े पैमानेपर जल और स्थलकी वाधाओंको दूर किया है। भारत और दूसरे देश जो ज्यादासे ज्यादा नजदीक आ गये हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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