Book Title: Swatantrata ka Arth
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 2
________________ धर्म और समाज अन्तर था | इसके साथ यह भी समझना सरल हो जायगा कि अंग्रेजी शासनने किन किन विषयोंमें हमपर गुलामी लादी या उसका पोत्रण किया और किन किन विषयोंमें पुरानी गुलामीके बन्धनों का उच्छेद किया या वे ढीले 'किये। साथ ही साथ हमें यह भी समझमें आ जायगा कि विदेशी शासनने हमारी इच्छित स्वतंत्रताके बीजोंका इच्छा या अनिच्छासे, जानकर या बिना जाने, कितने परिणाममें वपन किया जिसके परिणामस्वरूप हमने स्वतंत्रता प्राप्त की और उनकी कृतार्थता एक या दूसरे रूपमें अनुभव की । १२४ अँग्रेजी शासनकी स्थापनाके पहले देशका आर्थिक जीवन स्वतंत्र था । अर्थात् देशका कृषि उत्पादन, उसका बँटवारा, उद्योग-धंधे, कला-कारीगरी सभी व्यवसाय देशाभिमुख थे । इससे भयंकर से भयंकर दुष्कालोंमें भी पेट भरना ब्रिटिश शासन कालके सुकालके समय से सहज था । मानव जीवन के • मुख्य आधाररूप पशु-जीवन और वनस्पति- जीवन क्रमशः समृद्ध और हरेभरे थे जिनका ह्रास ब्रिटिश शासन की स्थापना के बाद उत्तरोत्तर होता गया और आज क्षीण अवस्थामें पहुँच गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि देशकी जनसंख्या काफी होते हुए भी जीवन को दृष्टिसे मानव समाज रक्त मांस और वीर्यहीन होकर सिर्फ हड्डीका ढाँचा भर रह गया है । अंग्रेजी शासन के पहले 'देशकी धार्मिक, सामाजिक और शिक्षाकी स्थितिका और उसके बादकी स्थितिका मिलान किया जाय तो पहले हमारी स्थिति एकदेशीय थी । देशमें धार्मिक वातावरण व्यापक और धन विपुल था, लेकिन उस वातावरण में जितनी परलोकाभिमुखता और भ्रामक क्रियाकाण्डकी प्रचुरता थी उतनी ही ऐहिक जीवन के सुलगते हुए और तत्काल हल माँगनेवाले प्रश्नोंके प्रति उदासीनता और पुरुषार्थ-हीनता थी । I श्रद्धाकी अति और अंधानुकरण, बुद्धि और तर्कके प्रकाशको सरलतासे अवरुद्ध कर देता था। समाज में स्त्री शक्ति उपेक्षित और सुषुप्त थी । उसको स्वातंत्र्य था तो सिर्फ गृह- संसारके जीवनको उज्ज्वल या क्षुब्ध करनेमें। वर्णव्यवस्थाका समग्र बल जाति-पांतिके असंख्य घेरोंमें तथा चौका-चूल्हे और ऊँच-नीच - की भावनाओंमें ही समाया हुआ था । ब्राह्मण और अन्य गुरुवर्ग और उनका पोषण करनेवाले इतर सवर्णोंकी जितनी महत्ता और महनीयता थी उतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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