Book Title: Swapnadhyaya Author(s): Bhadrabahuswami, Publisher: Bhadrabahuswami View full book textPage 9
________________ Q-008000000000000000NOEDO80090080050Q8003008008000008000 मणुयस्स सेयवत्थस्स दंसणे सया कालं / रत्चवडखवणयाणं मरणं पुण दसणं होई // 20 // गयवसहहंससारस सिहिमच्छजुएण मंसहत्थेण / सुमिणम्मि दिवमित्ते होई धणं सुक्खसंपत्ती // 21 // आसणे सयणे जाणे सरीरे वाहणे हेगी / चलमाणे विबुज्झिज्जा सिरीतस्स समंतओ // 22 // करहतुरंगे रिच्छम्मि वा ससे देव हसिव कंपे वा / मरणं महाभयं वा सुमिणेय दिट्टे वियाणाहि॥२३॥ पल्लंक कमलचंदन वसणजुए देवपूयन्हवणे वा / सुहसाहुदंसणम्मिय उत्तमफल संपया रुग्गं // 24 // इय पुव्व समजिय पुन्नपाव परिणामफलावसेसेण / पिच्छंति तारिसं चिय जारिसयं वेइयव्वंति // 25 // गयणम्मि गहा सुयणम्मि सुमिणया सुमिणया वणग्गेसु / तहवाहरंतिपुरिसं जह दिट्ठ पुत्वकम्मेहि॥२६॥ मनुजस्य श्वेतवस्त्रस्य दर्शने सदा कालम् / रक्तपट क्षपणता च मरणं पुनो दर्शनं भवति // 20 // गजवृषभहंस सारस शिखिमत्स्य युगेन मांस हस्तेन / खमे हष्टमात्रे भवति धनं सौख्यसंप्राप्तिः // 2 // आसने शयने याने शरीरे वाहने गृहे / चलन्नपि बुध्येत् श्रीस्तस्य समन्ततः // 22 // करभतुरङ्गे ऋक्षे वा शशे देवहसित कम्पे वा / मरणं महाभयं वा स्वमे च दृष्ठे विजानी हि // 23 // पाठक कमलचंदण बसणजुए देवपूयन्हवणे वा ! सुभ्रसाहु दसणम्मिय उत्तमफल संपदारोग्यम् // 24 // // 8 इति पूर्व समर्जित पुण्य पाप परिणाम फल विशेषेण / प्रेक्षन्ते तादृशकमेव यादृशकं वेदितव्यमिति // 26 // गगने ग्रहाः स्वपने स्वप्नाः शकुनका वनाग्रेषु / तथा वा हरन्ति पुरुषं यथा (रष्ट) दिष्टं पुर्व कर्मभिः // 26 // // द्वितीय स्वाध्यायः समाप्त // SARDOBOORDIEO IN0000000000000000020 JANOR00000000000st QaoteePage Navigation
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