Book Title: Sushil Nammala
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandiram

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Page 14
________________ श्रोतपोगच्छाधिपति - शासनसम्राट् - सूरिचक्रचक्रवति-जगद्गुरुश्रीमद्विजय नेमिसूरीश्वरपट्टालङ्कार - व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद - कविरत्नश्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरशिष्यरत्न-विद्वद्वर्य मुनिश्रीदक्षविजय शिष्यरत्नविद्वद्वर्य-बालमुनिश्रीसुशीलविजय विरचितम् // श्रीनेमीसूरीश्वराष्टकम् // [शार्दूलविक्रीडित वृत्तानि यज्ज्ञानं च निबन्धसिन्धुतरणे, नौकानिभं वर्त्तते / यहाणी शुभमानसाम्बुजरवि- नार्थसम्बोधिनी // यत्कीत्तिः किलदिक्षु विस्तृततरा, चन्द्रोज्ज्वला सर्वदा / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् // 1 // यस्य क्षान्तिरनल्पकोपशमने, धाराधराभा वरा। नानाशिष्यप्रशिष्यवृन्दसहितं, सद्बोधिरत्नप्रदम् / / दुन्तिप्रतिवादिवादनिपुणं, सम्राटपदालङ कृतं / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् / / 2 / / नानातर्कपरायणं गुणयुत्तं, लावण्यलीलालयं / न्यायव्याकरणादिशास्त्ररचना नैपुण्यभाजां वरम् / / तीर्थोद्धारधुरन्धरं मुनिवरं, चारित्ररत्नाकरं।। वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं, तं नेमिसूरीश्वरम् / / 3 / / वैराग्यद्रुमवर्धने जलधरं, श्वेताम्बराग्रेसरं / भव्यानामुपकारकारकुशलं, सिद्धान्तपारङ्गतम् / नानादर्शनदर्शनामलधियं, सद्ब्रह्मचर्याञ्चितं / वन्देऽहं शुभपादपद्मयुगलं तं नेमिसूरीश्वरम् / / 4 / / गीतार्थाऽनुसृते तथाऽऽगमगते, पान्थं पथि प्रोद्यतं / विद्वद्वन्दसुवन्दितामलगुणं, विद्वद्सभाभासुरम् / /

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