Book Title: Sukta Muktavali Author(s): Bhupendrasuri, Gulabvijay Upadhyay Publisher: Bhupendrasuri Jain Sahitya Samiti View full book textPage 6
________________ - श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वर-गुरुगुणाष्टकम् / mmmmon-(इन्द्रवज्राछन्दमि)ine दुष्प्राप्यमत्रार्यकुले नरत्वं, संप्राप्य चाहवृषमिद्धतत्वम् / चन्द्रावदातं भुवि सुप्रभातं, भूपेन्द्रसरि सुभजन्तु भव्याः! // 1 // विद्योतिता येन धिया धरित्री, पात्रीकृता भूरिजनाः शिवस्य / तं सूरिभूपेन्द्रमनन्तकीर्ति, भूपेन्द्रसरि० // 2 // क्षान्त्या क्षिति योऽजयदब्धयश्च, गांभीर्यतो येन-कृता अनुच्चैः। शान्त्या च सन्तस्तमनल्पबोध, भूपेन्द्रसरि० // यत्कीर्तिमालानिभपाठशाला,-स्तीखीनगर्यादिषु जैनवालाः / संश्रित्य यच्श्लोकमभिष्टुवन्ति, भूपेन्द्रसरि० / // 4 // वाचां विलासैः सुधियां धियोऽपि, चित्रीकृताः संसदि येन भूरि / तं लोकमान्यं नितरां वदान्यं, भूपेन्द्रसरि० // 5 // जाज्वल्यमाने महसां सुपुञ्ज, विद्योतते भव्यजनो यदीये / दंदह्यते द्वेषिपतङ्गिका तं, भूपेन्द्रसरि० // 6 // यं कल्पवृक्षाभमुपेत्य भव्याः,श्रेयाफल प्रापुरमन्दभावैः / गेय सतां मरिशिरोमणि तं, भूपेन्द्रसरि० . // 7 // यत्स्थापिताश्चैत्यपताकिकास्त, वातेरिता अङ्गुलिसंज्ञयेव / आकारयन्तीव जिनं दिदृशून्, भूपेन्द्रसरि० // 8 // प्रभाते पठेदएकं यः सुभक्त्या, गुरोः श्रीलभूपेन्द्रसूरेश्च नित्यम् / इहामुत्र कल्याणसौख्यं प्रयाति, विशालं कुलं स्वर्गलोकश्च नूनम् मुनि कल्याणविजय 3. = c00. = = = 1 // 3 //Page Navigation
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