________________ - विद्वान वंचित न रहें, साथ ही साथ व्याख्यान देनेवाले साधु-साध्विओं के लिये भी इस ग्रंथ को अत्युपयोगी समझ कर पू० पा० सा०वि० विद्याभूषण आचार्यदेव श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज सान्ने सं. 1981 में इस ग्रंथ का संस्कृत अनुवाद सरल मधुर एवं ललित भाषा में किया था। परन्तु आपकी विद्यमानता में यह ग्रंथ कतिपय कारणवश प्रकाशित न होसका आप के स्वर्गवास बाद सर्वानुमति से यह प्रस्ताव पास किया गया कि-स्वर्गवासी सूरीश्वरजी के उपदेशद्वारा साहित्य प्रकाशनार्थ जो द्रव्य श्रीसंघ में एकत्रित है उस द्रव्य का सदुपयोग आप के बनाये हुए ग्रंथप्रकाशन व ज्ञानरक्षानिमित्त भंडार में किया जावे / ऐसा निश्चय कर आप की चिरस्मृति में सं. 1995 चैत्र वदि 2 को आहोर ( मारवाड़ ) में वर्तमानाचार्य व्या. वा. पू० पा० श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज आदि मुनिमंडलने मिलकर आप के रचित ग्रंथप्रकाशन निमित्त 'श्रीभूपेन्द्रसरि जैनसाहित्यप्रकाशकसमिति कायम की और समिति की आर्थिक व्यवस्था के लिये यहां के सद्गृहस्थों की एक संचालक समिति भी स्थापित की गई। समिति के ग्रंथसंशोधन तथा प्रकाशित करने का कार्य पू. पा० उपाध्यायजी श्रीमान गुलाबविजयजी महाराज, मुनिप्रवर तपस्वी श्रीहर्षविजयजी, शान्तमूर्ति मुनिराज श्रीहंसविजयजी, तथा विद्याप्रेमी मुनिश्रीकल्याणविजयजी को दिया गया। उक्त मुनिवरोंने इस ग्रंथ का संशोधन कर मूल ग्रंथ के विषय व संबन्ध आदि में यथोचित सुधारा कर ग्रन्थ को उपादेय बनाने में यथाशक्ति अच्छा प्रयत्न किया है। ग्रंथान्तर्गत धर्मवर्ग में-देव, गुरु, धर्म का स्वरूप बतला कर, ज्ञान, मनुष्य जन्मादि 32 विषय एवं 48 कथाएँ / अर्थवर्ग में लक्ष्मी आदि 21 विषय 22 कथा, कामवर्ग में कामादि७ विषय 13 कथा, और मोक्षवर्ग में-मोक्षादि 10 विषय एवं 16