Book Title: Sukhi Hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Jayesh Mohanlal Sheth

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Page 53
________________ अधिक से अधिक आधा समय ही अर्थोपार्जन में और कम से कम आधा समय तो धर्म में ही लगाना योग्य है। क्योंकि धर्म से अनंत काल का दुःख मिटता है और साथ ही साथ पुण्य के कारण पैसा भी सहज ही प्राप्त होता है। जैसे गेहूँ बोने पर साथ में घास अपने-आप ही प्राप्त होती है, उसी प्रकार सत्य धर्म करने से पाप हल्के बनते हैं और पुण्य तीव्र बँधता है, इसलिए भवकटी के साथ-साथ पैसा और सुख अपने आप ही प्राप्त होता है और भविष्य में अव्याबाध सुखरूप मुक्ति मिलती है। • पुरुषार्थ से धर्म होता है और पुण्य से पैसा मिलता है। अर्थात् पूर्ण पुरुषार्थ धर्म में लगाना और पैसा कमाने में कम से कम समय लगाना; क्योंकि वह मेहनत के अनुपात में (PROPORTIONATE =प्रमाण) नहीं मिलता, परंतु पुण्य के अनुपात में मिलता है। • कर्मों का जो बंध होता है, उसके उदय काल में आत्मा के कैसे भाव होंगे अर्थात् उन कर्मों के उदय काल में नये कर्म कैसे बँधेंगे, उसे अनुबंध कहते हैं; वह अनुबंध, अभिप्राय का फल है; इसलिए सर्व पुरुषार्थ अभिप्राय बदलने में लगाना अर्थात् उसे सम्यक् करने में लगाना। ४६ सुखी होने की चाबी

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