Book Title: Sukhi Hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Jayesh Mohanlal Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ उसमें ही मेरा उद्धार है; अन्य किसी का पक्ष नहीं, क्योंकि उसमें मेरा उद्धार नहीं, नहीं और नहीं ही है, क्योंकि वह तो राग-द्वेष का कारण होता है, परंतु जब अपने आत्मा का ही पक्ष किया जावे, तब उसमें सर्व ज्ञानियों का पक्ष समाहित हो जाता है। जैन कहलाते लोगों को रात्रि के किसी भी कार्यक्रमभोजन समारंभ नहीं रखने चाहिए। किसी भी प्रसंग में फूल और आतिशबाजी का उपयोग नहीं करना चाहिए। विवाह, यह साधक के लिए मजबूरी होती है, न कि महोत्सव, क्योंकि जो साधक पूर्ण ब्रह्मचर्य न पाल सकते हों, उनके लिए विवाह व्यवस्था का सहारा लेना योग्य है, जिससे साधक अपना संसार, निर्विघ्न श्रावकधर्म अनुसार व्यतीत कर सके और अपनी मजबूरी भी योग्य मर्यादा सहित पूरी कर सके। ऐसे विवाह का महोत्सव नहीं होता, क्योंकि कोई अपनी मजबूरी को उत्सव बनाकर, महोत्सव करते ज्ञात नहीं होते। इसलिए साधक को विवाह बहुत जरूरी हो तो ही करना और वह भी सादगी से। दूसरे, यहाँ बताये अनुसार विवाह को मजबूरी समझकर किसी को विवाह नित्य चिंतन कणिकाएँ * ५१

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63