Book Title: Sukhi Hone ki Chabi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Jayesh Mohanlal Sheth

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Page 62
________________ रात्रिभोजन का पाप कितना? वह कहा जा सकने योग्य नहीं तथापि रत्नसंचयग्रंथ में उसेसमझाने का प्रयास किया है। वह निम्नानुसार है। 96 भव तक मछुआरा जीवों का सतत घात करे, उतना पाप एक सरोवर को सुखाने से होता है। (96) 108 भव तक सरोवरसुखावे, उतना पाप एक दावानल (आग) सुलगाने में लगता है। (96x108=10368) 101 भव तक दावानल सुलगावे, उतना पाप एक कुवाणिज्य (कुव्यापार) करने से लगता है। (10368x10131047168) 144 भव तक कुवाणिज्य करे, उतना पाप किसी को एक बार मिथ्या आरोप देने में लगता है। (1047168x1443D150792192) 151 भव तक मिथ्या आरोप देने में जो पाप लगता है, उतना पाप एकबार परस्त्रीगमन करने पर लगता है। (150762162x151322769620992) 199भव तक परस्त्रीगमन में जो पाप लगता है, उतना पापमात्र एक बार के रात्रिभोजन में लगता है। (22765086462x199=4531154577408) 96x108x101x144x151x199245,31,15,45,77,408 (इतने मछुआरे के भव में जितना पाप लगता है, उससे विशेष पाप एक बार केरात्रिभोजन का लगता है....) - रत्नसंचय गाथा, 447-451

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