Book Title: Sukh kya Hai
Author(s): 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ मैं कौन हूँ ? सुख क्या है ? यह तो सर्वमान्य तथ्य है कि सभी जीव सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। न केवल चाहते हैं, अपितु तदर्थ प्रयत्न भी करते हैं। सुबह से शाम तक हम सब जो कुछ भी करते हैं, उसके पीछे एकमात्र यही उद्देश्य रहता है कि हमारा दु:ख दूर हो और हम सुखी हो जाँय । प्रात: उठ हम शौचालय जाते हैं और यदि पेट खाली हो जाय तो बहुत प्रसन्न होते हैं; पर तत्काल ही खाली पेट भरने के लिए डायनिंग टेबल पर जा बैठते हैं। समझ में ही नहीं आता कि खाली पेट में सुख है या भरे पेट में? यदि पेट खाली हो तो उसे भरने की पड़ती है और भरा हो तो खाली करने को आतुर हो जाते हैं। अधिक क्या कहें ? हम आसन भी बदलते हैं तो सुखी होने के लिए ही बदलते हैं। ये छोटे-छोटे काम भी जीव दुःख दूर करने के लिए ही करता है, सुखी होने के लिए करता है; पर दुःख दूर नहीं होता, सुख प्राप्त नहीं होता। वस्तुत: बात यह है कि हम यह भी तो नहीं समझते कि वास्तविक सुख है क्या ? वस्तुत: सुख कहते किसे हैं ? सुख का वास्तविक स्वरूप समझे बिना मात्र सुख चाहने का कोई अर्थ नहीं होता। प्रायः सामान्यजन भोग-सामग्री को सुख-सामग्री मानते हैं और उसकी प्राप्ति को ही सुख की प्राप्ति समझते हैं; अत: उनका प्रयत्न भी उसी ओर रहता है। उनकी दृष्टि में सुख कैसे प्राप्त किया जाय का अर्थ होता है 'भोग-सामग्री कैसे प्राप्त की जावे?' उनके हृदय में 'सुख क्या है ?' इस तरह का प्रश्न ही नहीं उठता; क्योंकि उनका अंतर्मन यह माने

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 42