Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 13
________________ दान कहीं भी नक्कमा नहीं होता। पात्रे धर्मनिबन्धनं तदपरे प्रोद्यद्दयाख्यापकं । मित्रे प्रीतिविवर्धकं रिपुजने वैरापहारक्षमं ॥ भृत्ये भक्तिभरावहं नरपतौ सन्मानपूजाप्रदं । भट्टादौ च यशस्करं वितरणं न काश्यहो निष्फलम् ॥२८॥ गुरुभक्ति विना संब निष्फल है। विना गुरुभ्यो गुणनीरधिम्यो, जानाति धर्म न विचक्षणोऽपि। यथार्थसार्थ गुरुलोचनोऽपि, दीपं विना पश्यति नांधका।२९। जैसी भावना वैसी सिद्धि । मन्त्रे देवे गुरौ तीर्थे दैवज्ञे स्वमभेषजे । यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी ॥ ३० ॥ असार से सार लेना चाहिए। दानं वित्तादृतं वाचः, कीर्तिधर्मी तथायुषः । परोपकरणं कायाद,-सारात्सारमुद्धरेत् ।। ३१ ॥ लक्ष्म्यादि पाणी के फेन समान है। कल्लोलचपला लक्ष्मीः, संगमाः स्वप्नसनिमाः। वात्याव्यतिकरोत्क्षिप्त,-तूलतुल्यं च यौवनम् ॥ ३२ ॥ कृपण का धन निष्फल होता है। शास्त्रैनिःप्रतिभस्य किं गतदृशो दीप्रैः प्रदीपैश्च किं । किं क्लीवस्य वधूजनैः प्रहरणैः किं कातरस्योन्बणैः ॥

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