Book Title: Subhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Author(s): Bhavvijay
Publisher: Bhupatrai Jadavji Shah

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Page 12
________________ संगति का माहात्म्य । पश्य संगस्य माहात्म्यं, स्पर्शपाषाणयोगतः। . लोहं स्वर्णीभवेत् स्वर्ण,-योगात्काचो मणीयते ॥२२॥ संसर्ग से दोष और गुण आते है। गवाशनानां स वचः शृणोति,अहं च राजन् मुनिपुंगवानाम् । प्रत्यक्षमेतद्भवतापि दृष्टं, संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति ॥२३॥ मन ही मोक्ष को बन्ध को प्राप्त करता है। मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धस्तु(स्य) विषयासंगे(गो), मुक्तेनिर्विषयं मनः॥२४॥ · मणमरणे इं(0)दियमरणं, इंदियमरणे मरंति कम्माई । कम्ममरणेण मुक्खो, तम्हा मणमारणं विति ॥ २५ ॥ हस्तादि दानादि से शोभते है। दानेन पाणिनं तु कंकणेन, मानेन तृप्तिन तु भोजनेन । धनेन कान्तिन तु चन्दनेन, ध्यानेन मुक्तिन तु दर्शनेन ॥२६॥ मत का धन अच्छा नहीं है । दुर्मियोदयमनसंग्रहपरः पत्युर्वधं बन्धकी। ध्यायत्यर्थपतेर्मिषग्गदगणोत्पातं कलिं नारदः ॥ दोषग्राही जनश्च पश्यति परच्छिद्रं छलं राक्षसी । निःपुत्रं म्रियमाणमाढ्यमवनीपालो हहा वाञ्च्छति ॥२७॥

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