Book Title: Stotra Sarita Author(s): Mitaben J Vyas Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ १०४ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ (१) प्रस्तावनास्तव (२) सहजातिशयवर्णनस्तव (३) कर्मक्षयजातिशय वर्णन स्तव (४) सुकृतातिशय वर्णनस्तव (५) प्रतिहार्य स्तव (६) विपक्षनिरास स्तव (७) जगत्कर्तृत्वनिरास स्तव (८) ओकान्तनिरास स्तव (९) कलिप्रशम स्तव (१०) अद्भुत स्तव (११) अचिन्त्य महिमा स्तव (१२) वैराग्य स्तव (१३) विरोध स्तव (१४) योगसिद्ध स्तव (१५) भक्तिस्तव (१६) आत्मगर्दा स्तव (१७) शरणगमन स्तव (१८) कठोरोक्ति स्तव (१९) आज्ञास्तव (२०) आशी:स्तवनो समावेश थाय छे. तीर्थंकरप्रभुना विविध गुणोने केन्द्रमा राखी अहीं वर्णन करवामां आव्युं छे. दुष्कृत निन्दा, सुकृत अनुमोदना, शरणागति भावनी केळवणी अहीं प्रगट थाय छे. "आज्ञा ज महान" आवो घोष अहीं ध्वनित थाय छे. स्तोत्रना अन्तमां कहेवामां आव्युं छे के आ पाठ करीने चालुक्य नरेश कुमारपाल पोताना मनोरथ पूर्ण करे. आचार्यश्रीओ कुमारपाल माटे आ स्तोत्रनी रचना करी छे. आ स्तोत्रनो उल्लेख "मोहराज-पराजय' नामना नाटकमां "वीस दिव्यगुलिका"ना नामथी प्रगट थाय छे. स्तोत्रकाव्यनी विशाळ श्रेणीमां वीतरागस्तोत्रनुं स्थान विशिष्ट छे. भक्तिने लीधे अत्यन्त मधुर काव्य बनी रह्यं छे. तो साथोसाथ काव्यकलानी दृष्टिले श्रेष्ठ छे. आमां भक्तिनी साथोसाथ जैनदर्शननी उत्तमताने प्रतिपादित करवामां आवी छे. काम-राग, स्नेह-रागर्नु निवारण सुकर छे परन्तु अत्यन्त पापी दृष्टिराग', उच्छेदन तो पण्डितो-साधु-सन्तो माटे दुष्कर छे. कामराग-स्नेहरागावीषत्करनिवारणौ । दृष्टिरागस्तु पापीयान् दुरुच्छेदः सतामपि ॥ वीतराग स्तोत्रमा भक्तिनी साथोसाथ धर्मसहिष्णुता, परधर्मसन्मान भावना जोवा मळे छे. आ स्तोत्रमा रहेल रस, आनन्दथी हृदयने तल्लीन करवानी सहज प्रवृत्ति जोवा मळे छे. जेनाथी आ स्तोत्रनुं स्थान साहित्यमां विशिष्ट छे. (३) महादेवस्तोत्र : आ स्तोत्रनुं अन्य नाम महादेवबत्रीसी के महादेवद्वात्रिंशिका छे. नाम मुजब आमां ३२ पद्यो अने छेल्ले ३३मुं पद्य उपसंहाररूपे आर्या छन्दमां छे. हालPage Navigation
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