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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
आचार्य हेमचन्द्रसूरि रचित स्तोत्र - सरिता
डॉ. मीताबेन जे. व्यास
भारतीय साहित्यमां ऊर्मिकाव्यनी समृद्ध परम्परा प्राप्त थाय छे. ऊर्मिकाव्य लघु छतां आत्मसंवेदनापूर्ण, संगीतमय, ऊर्मि आवेगथी सभर होय छे. जेमां मानवभावनो स्वयम्भू आविष्कार आत्मनिवेदन शैलीमां जोवा मळे छे. वैदिक साहित्यमां अक-ओकथी सुन्दर स्तोत्र मळे छे. यजुर्वेदनी रुद्राध्याय स्तुति तेना दृष्टान्त स्वरूपे छे. जे भावस्पन्दनथी भरपूर, सहज, सरल शैलीमां अभिव्यक्त थयुं छे. स्तु धातु संस्कृत व्याकरणमां आवे छे जेनो अर्थ थाय छे स्तुति करवी, प्रार्थना करवी. आ 'स्तु' धातुने जुदाजुदा प्रत्ययो लागी स्तोत्र, स्तुति, स्तवन आदि शब्दो बने छे. स्तोत्र काव्यना मुख्य विभागमां (१) शैव स्तोत्र (२) शाक्त स्तोत्र (३) वैष्णव स्तोत्र (४) अन्य देवी-देवता स्तोत्र (५) जैन स्तोत्र ( ६ ) बौद्ध स्तोत्रनो समावेश थाय छे.
स्तोत्रकाव्यमां ईश्वरनुं गुणगान करीने कवि पोताना हृदयनी वेदना तथा आकांक्षा श्रद्धापूर्वक व्यक्त करे छे; जेने प्रार्थना कहेवाय छे. प्रार्थना दरेक धर्ममां होय छे. परन्तु भारतीय संस्कृतिमां ओक विशेषता जोवा मळे छे के तेमां निजलीनता अने कोमळता व्यक्त करता भक्तने भगवानना उदार हृदयनो परिचय थाय छे. स्तोत्रकाव्यने भारतीय संस्कृतिमां उपासनानुं श्रेष्ठ साधन मानवामां आव्युं छे. तेमां रहेली गेयता, ललितता, भावार्द्रता, संगीतमयताने कारणे कान्तासम्मित उपदेशनी अनुभूति करावे छे. स्तोत्रकाव्यमां कठोरचित्त मनुष्यने परिप्लावित करवानी प्रशंसनीय शक्ति रहेली छे.
आचार्य हेमचन्द्रसूरिनुं प्रदान गुजरातना साहित्य जगत माटे अणमोल, अविस्मरणीय छे. आचार्यश्रीओ व्याकरण, अलङ्कार, छन्द, कोश, महाकाव्य आदि क्षेत्रमां नोंधनीय कृतिओ आपी छे. आमां स्तोत्रनुं क्षेत्र पण अलिप्त रह्युं नथी. स्तोत्र साहित्यमां तेओओ कुल ६ कृति रची छे. जेमां
(१) सकलार्हत् स्तोत्र (बृहच्चैत्यवन्दनस्तोत्र)
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(२) विंशतिप्रकाश - (वीतरागस्तोत्र) (३) महादेव स्तोत्र (४) श्री अर्हन्नामसहस्र-समुच्चय (सिद्धसहस्रनामस्तोत्र) (५) अन्ययोग-व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका
(६) अयोग-व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका. नो समावेश थाय छे. आ दरेक स्तोत्रनो टूक परिचय आ मुजब छे. (१) सकलार्हत् स्तोत्र :
___ आ स्तोत्रनुं नाम तेना प्रथम श्लोकना प्रथम पद सकलार्हत् परथी राखवामां आव्युं छे. तेनुं अन्य नाम बृहच्चैत्यवन्दन प्राप्त थाय छे. अहीं कुल ३३ पद्योनो' समावेश थयो छे. जेने 'त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र'ना आरम्भमां स्थान मळ्युं छे. आ ओक माङ्गलिक स्तोत्र छे. जैनोना प्रतिक्रमणना आरम्भमां आ स्तोत्रनो पाठ करवामां आवे छे.
स्तोत्रना प्रारम्भमां आवेली बे गाथामां अर्हतपणाने नमस्कार करवामां आव्यां छे; कारण के अहँतत्वथी ज अरिहंत ओळखाय छे. त्यार बादनी गाथाओमां चोवीस तीर्थंकर प्रभुने क्रमशः वर्णवाया छे. जेमां तीर्थंकर परमात्मानी विशेषताओ, अतिशयताओ, विलक्षणताओनो उल्लेख करवामां आव्यो छे. प्रत्येक गाथामां प्रत्येक परमात्मानी भिन्न-भिन्न आयामथी स्तुति करवामां आवी छे. आ स्तोत्र पर त्रण टीकाओ रचाई छे. आ स्तोत्रनो गूर्जरगिरामां पद्यानुवाद -गद्यानुवाद- विवेचन पुष्कळ प्रमाणमां प्राप्त थाय छे. (२) वीतरागस्तोत्र :
__ आ संस्कृत साहित्य, उत्तम भक्तिस्तोत्र छे. आचार्यश्रीना भक्तहृदयनी उत्कटता अहीं प्रगट थाय छे. आ स्तोत्र वीस भागमां वहेंचायेल होवाथी "विंशतिप्रकाश' तरीके ओळखाय छे. आ स्तोत्रमा कुल २० स्तवो, दरेकमां अधिकांश ८-८ श्लोक छे कुल १८६ पद्यनो समावेश थयो छे. आ स्तोत्रमा विषय-वैविध्य पुष्कळ छे. जेमां
१. खरेखर २६ पद्यो छे. सं.
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अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१
(१) प्रस्तावनास्तव (२) सहजातिशयवर्णनस्तव (३) कर्मक्षयजातिशय वर्णन स्तव (४) सुकृतातिशय वर्णनस्तव (५) प्रतिहार्य स्तव (६) विपक्षनिरास स्तव (७) जगत्कर्तृत्वनिरास स्तव (८) ओकान्तनिरास स्तव (९) कलिप्रशम स्तव (१०) अद्भुत स्तव (११) अचिन्त्य महिमा स्तव (१२) वैराग्य स्तव (१३) विरोध स्तव (१४) योगसिद्ध स्तव (१५) भक्तिस्तव (१६) आत्मगर्दा स्तव (१७) शरणगमन स्तव (१८) कठोरोक्ति स्तव (१९) आज्ञास्तव (२०) आशी:स्तवनो समावेश थाय छे.
तीर्थंकरप्रभुना विविध गुणोने केन्द्रमा राखी अहीं वर्णन करवामां आव्युं छे. दुष्कृत निन्दा, सुकृत अनुमोदना, शरणागति भावनी केळवणी अहीं प्रगट थाय छे. "आज्ञा ज महान" आवो घोष अहीं ध्वनित थाय छे. स्तोत्रना अन्तमां कहेवामां आव्युं छे के आ पाठ करीने चालुक्य नरेश कुमारपाल पोताना मनोरथ पूर्ण करे. आचार्यश्रीओ कुमारपाल माटे आ स्तोत्रनी रचना करी छे. आ स्तोत्रनो उल्लेख "मोहराज-पराजय' नामना नाटकमां "वीस दिव्यगुलिका"ना नामथी प्रगट थाय छे.
स्तोत्रकाव्यनी विशाळ श्रेणीमां वीतरागस्तोत्रनुं स्थान विशिष्ट छे. भक्तिने लीधे अत्यन्त मधुर काव्य बनी रह्यं छे. तो साथोसाथ काव्यकलानी दृष्टिले श्रेष्ठ छे. आमां भक्तिनी साथोसाथ जैनदर्शननी उत्तमताने प्रतिपादित करवामां आवी छे. काम-राग, स्नेह-रागर्नु निवारण सुकर छे परन्तु अत्यन्त पापी दृष्टिराग', उच्छेदन तो पण्डितो-साधु-सन्तो माटे दुष्कर छे.
कामराग-स्नेहरागावीषत्करनिवारणौ ।
दृष्टिरागस्तु पापीयान् दुरुच्छेदः सतामपि ॥
वीतराग स्तोत्रमा भक्तिनी साथोसाथ धर्मसहिष्णुता, परधर्मसन्मान भावना जोवा मळे छे. आ स्तोत्रमा रहेल रस, आनन्दथी हृदयने तल्लीन करवानी सहज प्रवृत्ति जोवा मळे छे. जेनाथी आ स्तोत्रनुं स्थान साहित्यमां विशिष्ट छे. (३) महादेवस्तोत्र :
आ स्तोत्रनुं अन्य नाम महादेवबत्रीसी के महादेवद्वात्रिंशिका छे. नाम मुजब आमां ३२ पद्यो अने छेल्ले ३३मुं पद्य उपसंहाररूपे आर्या छन्दमां छे. हाल
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प्राप्त थतुं स्तोत्र ४४ श्लोकोनुं छे जे दर्शावे छे के समय जता अहीं प्रक्षेप थया
हशे.
आ स्तोत्रमा महादेवनां लक्षण अने ओ लक्षणोथी लक्षित अवा देवाधिदेव महादेव आ दुनियामां कोण होई शके ? अनुं सविस्तार वर्णन आप्यु छे. अभयप्रद, प्रशान्त, रागद्वेषमुक्त, जितेन्द्रिय, निर्मोही, लोभमदमुक्त, कामविजेता, महाज्ञानी, महायोगी, महामौनी जेवा अनेक विशेषणोनो प्रयोग करीने हेमचन्द्राचार्ये जैन मतानुसार वीतराग देव- स्वरुप दर्शाव्युं छे. आवां लक्षणो जेमां चरितार्थ नथी ओवा अन्य कोइ देव न होइ शके, ओवो पण ओनो ध्वनि छे.
भवबीजाङ्करजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य ।
ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ ___ अर्थात् जेना भवरूपी बीजना अङ्करो उत्पन्न करनारा रागादि दोष शमी गया होय तेवा ज कोइ देव होय पछी ते ब्रह्मा, विष्णु, महेश के जिन होय तेने नमस्कार छे. आवी अनोखी स्तुति द्वारा आचार्यश्री स्वसिद्धान्त अनुसार वीतरागदेवस्वरूप दर्शावीने वास्तविक शिवतत्त्वने व्यक्त करे छे.
वैदिक धर्मना त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेशनो विचार जैनधर्म स्वीकारे छे. परन्तु तेनी भावनामा परिवर्तन छे. जगत्सर्जक ब्रह्मा, पालक विष्णु अने संहारक शङ्कर. जगतनी उत्पत्ति, स्थिति अने संहारने न माननार जैन दृष्टि आ त्रण स्वरूपने अक अर्हत के जिनेश्वररूपी मूर्तिना दर्शनरूपे निहाळे छे.
एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । त एव च पुनरुक्ता ज्ञानचारित्रदर्शनात् ॥ ज्ञानं विष्णुः सदा प्रोक्तं ब्रह्मा चारित्रमुच्यते ।
सम्यक्त्वं तु शिवः प्रोक्तमहन्मूर्तिस्त्रयात्मिका ॥ (४) श्री अर्हन्नामसहस्त्र-समुच्चय :
स्तोत्रना अनेक प्रकारोमां अेक प्रकार छे नामावलि स्तोत्र. आचार्यश्री रचित आ स्तोत्रकाव्य पण आ ज प्रकार, छे. आ स्तोत्रमा अन्य कांइ खास वर्णन प्राप्त थतुं नथी. परन्तु परमतत्त्वना नामना पुनः उच्चारण जोवा मळे छे.
अर्हन्नामसहस्र स्तोत्रनुं बीजं नाम "सिद्धसहस्रनामस्तोत्र'',
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अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
‘“जिनसहस्रनामस्तोत्र’” प्राप्त थाय छे. अहीं सो-सो नामनुं ओक शतक अवा दश शतकमां विभाजित आ स्तोत्रमां भगवान जिननां १००८ नाम आपवामां आव्यां छे. आ स्तोत्र ओक प्रभावक स्तोत्र छे. जेना अन्तमां फलश्रुति लखतां कह्युं छे के आ नामोनुं श्रवण, मनन, पठन के जाप अत्यन्त फलदायी छे. (५) अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका :
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आ बत्रीसीमां आचार्यश्रीनी कुशळ कलम द्वारा महावीरप्रभुनी विशद स्तुति करवामां आवी छे. प्रारम्भना त्रण श्लोकमां भगवानना ४ अतिशय ( १ ) ज्ञानातिशय (२) अपायापगमातिशय (३) वचनातिशय (४) पूजातिशय दर्शावीने सीधा ज अन्य दर्शन पर प्रहार करीने तेनी आलोचना करी छे. ४ थी ९ श्लोकमां वैशेषिक दर्शन, १० मा श्लोकमां न्याय दर्शन, ११ - १२ श्लोकमां पूर्वमीमांसादर्शन, १३-१४ श्लोकमां वेदान्तदर्शन, १५मा श्लोकमां सांख्यदर्शन, १६-१९ श्लोकमां बौद्धदर्शन, २०मा श्लोकमां चार्वाकदर्शननी खूबीपूर्वक चर्चा करीने निरसन करवामां आव्युं छे.
श्लोक २१ थी ३० सुधी जैनदर्शननी प्रतिष्ठा करवामां आवी छे. अन्तमां जैनदर्शननी व्यापकता दर्शावता आचार्यश्री कहे छे के जे रीते बीजा दर्शनोना सिद्धान्त अकबीजाना पक्ष के प्रतिपक्ष बनावाना कारणे ईर्ष्याथी भरेला छे, ओवी रीते अर्हन् मुनिनो आ सिद्धान्त नथी. कारण के अहीं निरूपेलां नयवाद, प्रमाणवाद, सप्तनय, अनेकान्तवाद, सप्तभङ्गी, सकलादेश अने विकलादेश आदि यथार्थ वस्तु छे अनाथी दृष्टि सात्त्विक, तात्त्विक अने मौलिक बनी शके छे. श्लोक ३१-३२मां भगवान महावीरनी स्तुति करी उपसंहार आपवामां आव्यो छे.
डॉ. आनन्दशंकर ध्रुव कहे छे के आ स्तोत्रमां चिन्तन तथा भक्तिनो अटलो सुन्दर समन्वय थयो छे के आ स्तोत्र दर्शन तथा काव्यकला बन्ने दृष्टि उत्कृष्ट कही शकाय तेवुं छे.
(६) अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका :
आ द्वात्रिंशिका स्तोत्रनुं स्वरूप आगळना स्तोत्रनी समान ज छे परन्तु तफावत छे बन्नेनी रजूआतमां. आगळना स्तोत्रमां परमतखण्डन छे ज्यारे अहीं
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________________ डिसेम्बर 2010 107 स्वमतमण्डन रजू थयुं छे. आरम्भमां भगवान महावीरनी स्तुति करी सरलसरस शब्दोमां जैनधर्मनुं स्वरूपवर्णन रजू करवामां आवे छे. संसारमा आववानुं कारण छे आस्रव अने मोक्षनुं कारण छे संवर. जैन सिद्धान्तनो आ सार अहीं मानवाने कारणे कोइपण विरोध आवतो नथी. द्वात्रिंशिका अटले बत्रीस श्लोकोनो समूह. आ बन्ने बत्रीसीमां आचार्यनी भाषा-शैली उच्च कवित्व गुणो युक्त छे. दार्शनिकतानी साथोसाथ भक्तहृदयनी लागणीनो तीव्र स्वर प्रगट थयो छे. अन्य दर्शन शाखाओना सिद्धान्तोनुं आलोचनात्मक अवलोकन करीने भक्तिनो सुभग समन्वय सुन्दर रीते अभिव्यक्त कर्यो छे. आ स्तवनो जेटलां दार्शनिक छे तेटलां ज साहित्यिक बनी रह्यां छे. सार : आ स्तोत्र-सरितामां प्लावित बनीने आचार्य हेमचन्द्रसूरिनुं कवि हृदय वेदना, व्यथा, आकांक्षा श्रद्धापूर्वक प्रगट करे छे. प्रार्थना दरेक धर्मओक अभिन्न अंग छे परन्तु अहीं आपणे जोइ शकीओ छीओ के स्तोत्रकार निजलीनता अने कोमळता व्यक्त करीने पोताना उदार हृदयोनो परिचय आपे छे. जेमां कोइ धार्मिक संकीर्णता देखाती नथी. अन्तरनो उमळको, आत्मनिवेदन अने मानसिक शान्ति अहीं प्रगट थती देखाय छे. स्तोत्रमा चाहे वीतराग होय के महादेव होय तेमां समन्वयात्मक दृष्टिकोण जोवा मळे छे. जेटली श्रद्धाथी तेओ महावीरने नमस्कार करे छे ओटली ज श्रद्धा अन्य देवो तरफ दर्शावे छे. आथी ज कही शकाय के आचार्यश्री जेटला दार्शनिक, आलंकारिक, वैयाकरणी छे तेटला ज कोमल हृदयना आर्द्र भक्तकवि छे. C/o. अध्यक्ष, संस्कृतविभाग शामळदास आर्ट्स कॉलेज, भावनगर-१