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अनुसन्धान- ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
‘“जिनसहस्रनामस्तोत्र’” प्राप्त थाय छे. अहीं सो-सो नामनुं ओक शतक अवा दश शतकमां विभाजित आ स्तोत्रमां भगवान जिननां १००८ नाम आपवामां आव्यां छे. आ स्तोत्र ओक प्रभावक स्तोत्र छे. जेना अन्तमां फलश्रुति लखतां कह्युं छे के आ नामोनुं श्रवण, मनन, पठन के जाप अत्यन्त फलदायी छे. (५) अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका :
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आ बत्रीसीमां आचार्यश्रीनी कुशळ कलम द्वारा महावीरप्रभुनी विशद स्तुति करवामां आवी छे. प्रारम्भना त्रण श्लोकमां भगवानना ४ अतिशय ( १ ) ज्ञानातिशय (२) अपायापगमातिशय (३) वचनातिशय (४) पूजातिशय दर्शावीने सीधा ज अन्य दर्शन पर प्रहार करीने तेनी आलोचना करी छे. ४ थी ९ श्लोकमां वैशेषिक दर्शन, १० मा श्लोकमां न्याय दर्शन, ११ - १२ श्लोकमां पूर्वमीमांसादर्शन, १३-१४ श्लोकमां वेदान्तदर्शन, १५मा श्लोकमां सांख्यदर्शन, १६-१९ श्लोकमां बौद्धदर्शन, २०मा श्लोकमां चार्वाकदर्शननी खूबीपूर्वक चर्चा करीने निरसन करवामां आव्युं छे.
श्लोक २१ थी ३० सुधी जैनदर्शननी प्रतिष्ठा करवामां आवी छे. अन्तमां जैनदर्शननी व्यापकता दर्शावता आचार्यश्री कहे छे के जे रीते बीजा दर्शनोना सिद्धान्त अकबीजाना पक्ष के प्रतिपक्ष बनावाना कारणे ईर्ष्याथी भरेला छे, ओवी रीते अर्हन् मुनिनो आ सिद्धान्त नथी. कारण के अहीं निरूपेलां नयवाद, प्रमाणवाद, सप्तनय, अनेकान्तवाद, सप्तभङ्गी, सकलादेश अने विकलादेश आदि यथार्थ वस्तु छे अनाथी दृष्टि सात्त्विक, तात्त्विक अने मौलिक बनी शके छे. श्लोक ३१-३२मां भगवान महावीरनी स्तुति करी उपसंहार आपवामां आव्यो छे.
डॉ. आनन्दशंकर ध्रुव कहे छे के आ स्तोत्रमां चिन्तन तथा भक्तिनो अटलो सुन्दर समन्वय थयो छे के आ स्तोत्र दर्शन तथा काव्यकला बन्ने दृष्टि उत्कृष्ट कही शकाय तेवुं छे.
(६) अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका :
आ द्वात्रिंशिका स्तोत्रनुं स्वरूप आगळना स्तोत्रनी समान ज छे परन्तु तफावत छे बन्नेनी रजूआतमां. आगळना स्तोत्रमां परमतखण्डन छे ज्यारे अहीं