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डिसेम्बर २०१०
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प्राप्त थतुं स्तोत्र ४४ श्लोकोनुं छे जे दर्शावे छे के समय जता अहीं प्रक्षेप थया
हशे.
आ स्तोत्रमा महादेवनां लक्षण अने ओ लक्षणोथी लक्षित अवा देवाधिदेव महादेव आ दुनियामां कोण होई शके ? अनुं सविस्तार वर्णन आप्यु छे. अभयप्रद, प्रशान्त, रागद्वेषमुक्त, जितेन्द्रिय, निर्मोही, लोभमदमुक्त, कामविजेता, महाज्ञानी, महायोगी, महामौनी जेवा अनेक विशेषणोनो प्रयोग करीने हेमचन्द्राचार्ये जैन मतानुसार वीतराग देव- स्वरुप दर्शाव्युं छे. आवां लक्षणो जेमां चरितार्थ नथी ओवा अन्य कोइ देव न होइ शके, ओवो पण ओनो ध्वनि छे.
भवबीजाङ्करजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य ।
ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥ ___ अर्थात् जेना भवरूपी बीजना अङ्करो उत्पन्न करनारा रागादि दोष शमी गया होय तेवा ज कोइ देव होय पछी ते ब्रह्मा, विष्णु, महेश के जिन होय तेने नमस्कार छे. आवी अनोखी स्तुति द्वारा आचार्यश्री स्वसिद्धान्त अनुसार वीतरागदेवस्वरूप दर्शावीने वास्तविक शिवतत्त्वने व्यक्त करे छे.
वैदिक धर्मना त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेशनो विचार जैनधर्म स्वीकारे छे. परन्तु तेनी भावनामा परिवर्तन छे. जगत्सर्जक ब्रह्मा, पालक विष्णु अने संहारक शङ्कर. जगतनी उत्पत्ति, स्थिति अने संहारने न माननार जैन दृष्टि आ त्रण स्वरूपने अक अर्हत के जिनेश्वररूपी मूर्तिना दर्शनरूपे निहाळे छे.
एकमूर्तिस्त्रयो भागा ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । त एव च पुनरुक्ता ज्ञानचारित्रदर्शनात् ॥ ज्ञानं विष्णुः सदा प्रोक्तं ब्रह्मा चारित्रमुच्यते ।
सम्यक्त्वं तु शिवः प्रोक्तमहन्मूर्तिस्त्रयात्मिका ॥ (४) श्री अर्हन्नामसहस्त्र-समुच्चय :
स्तोत्रना अनेक प्रकारोमां अेक प्रकार छे नामावलि स्तोत्र. आचार्यश्री रचित आ स्तोत्रकाव्य पण आ ज प्रकार, छे. आ स्तोत्रमा अन्य कांइ खास वर्णन प्राप्त थतुं नथी. परन्तु परमतत्त्वना नामना पुनः उच्चारण जोवा मळे छे.
अर्हन्नामसहस्र स्तोत्रनुं बीजं नाम "सिद्धसहस्रनामस्तोत्र'',