Book Title: Story Of Merchant Champaka
Author(s): Johannes Hertel
Publisher: Johannes Hertel

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Page 51
________________ Variants. 51 गणीउ इक्कसवायाणं. As to the readings of M m (metrical recension) see Introduction, p. 9 note 5. After this B ins. another corrupted stanza : तिविरे पउसे सगणीउ / सयसहस्सकोडिगणोवाकोडा कोडिगणावाहुजुववगोबहुत्तरीवा // 1) B दत्ता वया for तदा च वया // 2) c ins. श्रेष्ठिनः / 3) C ins. तव // 4) B वैराग्यं // 1) c ins. कर्मणा; A transp:: त्वं तेन // 1) C चंपकव्यवहारी॥ 2) B भार्यासुतो॥ 3) B माराध्य, om. ता; C तपस्त, then space for one akshara, then च अनशनेन मृखा for तामाराध्य // 1) W जगा; C ins. ततश्युत्वा // 1) D om. इति; A इति अनुकंपादानोपरि; B इति ऽनुकंपादानविषये // ) A चंपकष्टिकथा, चंपकव्यवहारीकथा ) श्रीसंमपूर्ण; for संपूर्णम् w श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः कृतं. After संपूर्णम B adds यातमिदं // Colo- CW have no colophon. The colophons of the other MSS. run as follows. A: लिखितं पं० भुवनमेरुगणिना; B श्रीअचलगछे / आचार्यश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीपुण्यप्रभसूरि / तेतशष्यवाचनाचार्यवाचकशरोमणिश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीजिनहर्षगणि / ततशष्यऋषिगोवाललषितमस्त्यिषा प्रतिः // ऋषिमहिमहर्षयोग्य / पुण्यार्थेन लषितं // शुभं भवतु // ; D: संवत 1631 वर्षे / माघमासे शुक्लपक्षे 4 शनी लिखापितं // श्रीथिराद्रपद्रे // शुभं भवतु // : बधानि चेतांसि नं सुंदरीणां / बद्धः कथं कंबलमंबलोयं // यदा चित्तर्विद्वलतामुपैति / स कंबलः किं बलमातनोति / 1 // स्वांतःपुरे या जनकस्य पुची / दृष्टं न शक्या चिदशैर्नभस्थैः / तामद्यशीतापुरराजमाग्र्गे / ग्रामीणलोकास्तु विलोकयति / 1 // पुण्यैः संभाव्यते पुंसां / असंभाव्यमपक्षतौ / तैरुपैरसमा शैला / किं न रामस्य वारिधीः / 2 // phons.

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