Book Title: Sthanang Sutram Part 04
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 3
________________ पाव संप्रदाय के पू. सोहनलालजी म. सा. की आज्ञामें विचरनेवाले पू. ___ मयारामजी म. के शिष्यानुशिष्य परम प्रतापी श्री व्याख्यानवाचस्पति-स्वर्गीय मदनलाल जी महाराजको अष्टक (मालिनी छद) परिधृतगुणमाल शुद्धधर्मालबालं, विमलगतिमरालं शुद्धभावैर्विशालम् । सकलमनसि दुःखान्मन्यते त्वां वियुक्तं मुमुनिमदनलालं शुद्धभालं भजध्वम् ॥ १ ॥ हरिगीत छंद हिन्दी गुणगण विमल धारण किये, जो आलवाल सुधर्मके थे हंस सम जो चाल चलते, मूल थे शुभ कर्म के । हम मानते हिय तापसे, दूरस्थ उन मतिमानको, हे भव्य जन मज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥१॥ अमृतसरससारां शुद्धतत्त्वैकधारां प्रशमरसगभीरां भव्यलोका मयूराः । मधु-मधुरगिरते पीतवन्तोऽत्यनृत्यन्, सुमुनिमदनलालं शुद्धभालं भजध्वम् ॥२॥ हिन्दी पीयूष सम अतिशय सरस, अरु शान्त रस गभीरकी। तात्विक मधुर मधुमय विमल वाणी परममति धीरकी। भविजन श्रवण कर नाचते, उन दिव्य सन्त मुजानको, हे भव्यजन भज भावसे, मुनि मदनलाल महानको ॥ २ ॥ त्वयि शशि निजगत्यां, निष्फलथेऽत्रलोकाः, सुखिन इव यदाऽऽसन्, त्वं ह्यकस्मात्कथं हा । गत इत इति खेदै, दुःखिनस्ते जनास्तं सुमुनि मदनलालं, शुद्धभालं भजध्वम् ।। ३ ।।

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