Book Title: Sthanang Sutram Part 04 Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 7
________________ ___ सदेशके शब्द अब तक कानोंमें गूंज कर एक अनुपम रोमांच प्रस्फुटित कर देते हैं। "धर्म पर जो अधिकार कर लेता है वह उसका जीवन भर साथ देता है । धर्मको अपनानेवाला चाहिये । धर्मको अपनाने में कितना त्याग करना पड़ता है ? पूर्व-पुरुषों के उदाहरण समक्ष हैं। उन्होंने धर्म पर सब कुछ न्यौछावर कर डाला, उसीके लिये जिये, उसीके लिये मरे । यह छोटी वात नहीं बहुत बड़ी है । धर्म मिलना कठिन नहीं-पालन करना कठिन है। तुम समझदार हो, सुयोग्य हो, जो पाया है उसे संभाल कर रखोगे तो सब तरहसे समुन्नत बनोगे। ईमानदारी से कदम बढाते रहो तो तुम्हारा जीवन चमके गा, तब क्याही आनंद आयेगा ?" वास्तबमें उस कल्पवृक्षकी छाया असीम थी, कभी छोटी नहीं हुई, जो आया सभाको उसमें स्थान मिला तथा मिली अद्भुत शांति ! करुणाके सागरः गुरुदेवके मनमें करुणाका असीम सागर हिलोरे लेता था। उनके नेत्रों में आर्द्रता थी, वाणीमें सान्त्वनाका स्वर तथा हृदयमें दुःख दूर करने की लगन । सरल तथा शुद्ध हृदय लेकर जो भी उनके निकट आया, उसे आन्तरिक स्नेह से सराबोर कर दिया। जीवन-चित्रण:-- गुरुदेव का जन्म पंजाब प्रान्तके रोहतक जिले के ग्राम : राजपुर' में विक्रम सं० १९५२ में हुआ था। पिताश्री मुरारीलालजी व माता गेन्दोबाई-बडे तपोनिष्ठ धर्मात्मा एवं सरल स्वभावके थे । प्रकृतिने जिस पुष्पको एक कोने में खिलाया, किसे पता था वह अपने सौरभसे संसारको सुरभित कर डालेगा। __उस नये फूलका नाम रखा मातापिताने “ मौजीराम" चूंकि उनके आंगनमें मौज-खुशी फुट पडी थी। मौनीरामजीका वचपन धार्मिक संस्कारों में आगे बढ़ा । ७ वर्ष की उम्रमें मां छोड़ गई । अब पिताही जीवन रक्षक थे, गांवमें कुछ पढाई शुरू की। ९ वर्ष के होने पर देहली मौसीके (मासी) घर आ गये । पहाडी धीरज पर बहूत बडा मसिद्ध जैन घराना था, जहां मौजीरामजीकी शिक्षा सम्पन्न हुई । यौवनमें कदम रखा । मौसाजी की दुकानका कार्य संभाल लिया। किंतु जिन्हें बहुत ऊंची आध्यात्मिक साधना करनी होती है, वे भौतिकताके रंगीन वातावरणमें घिरे नहीं रह सकते ।Page Navigation
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