Book Title: Sramana 2006 04
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 5
________________ . - सम्पादकीय श्रमण अप्रैल-जून २००६ का अंक सम्माननीय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। श्रमण के पूर्व अंक (जनवरी-मार्च २००६) की तरह प्रस्तुत अंक के हिन्दी खण्ड में जैन साहित्य, दर्शन, आचार, इतिहास एवं संस्कृति पर आधारित कतिपय महत्त्वपूर्ण आलेख प्रकाशित किये गये हैं। अंग्रेजी खण्ड में जैन अहिंसा पर कतिपय आलेखों का समावेश किया गया है जिनमें विशेषतया मेडिकल एथिक्स में अहिंसापालन कितना सम्भव है, इसको रेखांकित करनेवाले तीन महत्त्वपूर्ण आलेखों एवं राजनीति के क्षेत्र में अहिंसा की प्रासंगिकता का विश्लेषण करने वाले एक आलेख को स्थान दिया गया है। सभी आलेख विषयवस्तु, प्रस्तुति एवं भाषा की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। हमारा प्रयास यही रहता है कि श्रमण का प्रत्येक अंक पिछले अंकों की तुलना में हर दृष्टि से बेहतर हो और उसमें प्रकाशित सभी आलेख शुद्ध रूप में मुद्रित हों। __इस अंक के साथ हम अपने सम्माननीय पाठकों के लिये जैन कथा साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाली प्राकृत भाषा में निबद्ध श्रीमद्धनेश्वर सूरि विरचित सुरसुंदरीचरिअं का चतुर्थ परिच्छेद जिसका संस्कृत च्छाया के साथ गुजराती एवं हिन्दी अनुवाद लब्धिसूरीश्वर गुरुकृपा-पात्र आचार्य राजयशसूरीश्वरजी महाराज के योग्य शिष्य गणिवर्य विश्रुतयश विजयजी ने किया है, को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है पाठक इस अद्वितीय कथारस में निमज्जन कर सकेंगे। सुधी पाठकों से निवेदन है कि आपकी आलोचनायें ही हमें पूर्णता प्रदान करती हैं। एतदर्थ आप अपने अमूल्य विचारों/आलोचनाओं से हमें वंचित न करें, उनसे हमें सदा अवगत कराते रहें ताकि आगामी अंकों में हम अपनी कमियां सुधार सकें। - सम्पादक - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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