Book Title: Some Distinguished Jains
Author(s): Umrao Singh Tank
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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(१) तस्पामदनिश मतीव विकासवाया पानसे विमानस फतावितास । पदपोतमो गुरुरमाद्वियुधो यदीये पट्टोमनिष्ठ सुम 'निगणिवद्धमाम १
. (१०) सदा मुवनापातम्यातायदातगुणोत्तर पुपरणामामूरि सूरियमव मिमेस्वर । वरतर ति म्याति यस्मादवाए गणोपर्य परि मनकापे पीप-दुगणो वनी १०
(१८) तत पीमिनचंद्राल्यो गमव मुनिएगा । संवैगरंगणात यसकार चबमार च १८
(१८) मनुस्वा प्रपदापरे पनित ग्रोपारद पिम्सामपि नाफा रिण म्यानेनंत मुरवोदय विवरणं चर्चा मवाग्याक सीमतोमपदेवम् रिगुरवम्सेना पुर जहिरे पर
(२०)-मिनवमम-शागनीपासमो- प्रिय पोय गुरु गौरव परिपुटेन सोधोपम निपीप गिरमो धुनापि कुमते म फसार २०
(२१) सापट्टे मिनदारिशमयदयोगीशरामपिर्मित निरुददर्शन--रिकपाम्पदेगि मुगु रोमें मोम मध्य पुरषा सतां मुगाजानप्रिपा मगम २१
(२२) रा पर चोशिनद्रमरियंभव निसंग गुणस्तर निता मणिर्मामसने पदोयुगस दामादिय माग्यापार
(२३) प तपपगते सुमाधममपि प्रत्यापि गान मांग गिरिपुमपि प्रोपदृष्टांत पाटेवादिगामारपthi पमा म्यास ते गागीरपुंगवा मिनागपुण्या यमगुरता २॥
(२९) म जिनेवरिपतीय टिममा गोमामा भुवि विधिमाफमतामा मदिशा निर्यात पिगिमुना
(२) मिन पोधा समायोधा जन विरमनिरापापा र पो पुरषपाप गद्र पर्चा पमपूर्ण ।

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