Book Title: Sittunja Kappo
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 402
________________ g पृष्ठम्: पङ्क्तिः 57 29 अशुद्धम् वस्सं शुखम् / वरसं शुद्धम् / नक्ष्यति दुन्दुभ गुप्त जिम कामान्धो . टेऽस् कीचक सम्मवः हतो 27 1 24 तृप्यन्ति राझ्या जिघृक्षया प्रोचुविणीओ क्रमाद्ब पयो जगत्त्रयः सप्तति तटाकं पृष्ठम् / पक्तिः अशुद्धम् 38 - 16 नक्ष्यति 39 5 र्दुन्दभ 39 26 गृप्त 39 27 जीम कामान्धा 40 29 हे स 41 22 काचक 42 3 सम्मव: 45 20 हता 28 स्त्वये / 16 कूपाद 46 19 सुनु 23 ' द्वारका 46 : 32 रिपाः 7 दर्शा रिपून् सबलरपि 13. द्राणं तस्यापरि भूङ्क्ते 5 समा.. स्वस्तिकं स्तवे तृप्तन्ति राझ्या जिघृक्षया प्रोचू विणीआ क्रमाद्व पया जगत्रयः सप्तात तटागं र्जन शूकर्याः / / रस्येव चतुणा वदे यातो कूपोद सूनु र्जुन 71 32 721 72 32 75 19-22 796 80 22 80 30 30 83 द्वारिका रिपोः दशा सूकर्याः रस्त्ये व चतुर्णां रिपून् सबलैरपि 82 वंदे द्रोणं यान्तो 84 सुआ सुओ तस्योपरि भुङ्क्ते समो सुस्थितं . गृह 0 0 6 ग्रह स राट् ! भुजा शात तहि मुत्क राट ! 91 S भुजाः 92 भूरिशा भूरिशो सूनू सूनु पुञ्छथ पुच्छच गन्थि ग्रन्थि ताह मुक्त कञ्चन काञ्चन यान्तां यान्ती राट् ! ध्वनन् ध्वनद् लक्षाश्च लक्षा च कियतीः कियती गुरीशौ। सूरीशौ राट! 26 18 तीर्थ दध्यौ 56 हाल तीथ दद्ध्यौ दशा-वयों बीजआ राह 92 93 93 93 93 94 दश-वर्या बीजओ राहे 32 19 21 29 29 8 56 . 33 *

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