Book Title: Silakkhandhavagga Abhinava Tika Part 2
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 435
________________ [२४] पियजातिकानीति - २९१ पिसाचाति - २२४ पिहितोति - ४७ पीति - ११५, ११६, २१३, ३२७, ३४६, ३४७ पीतिवचनन्ति - १२ पीतिसमुट्ठानवचनं - १२ पीतिसोमनस्सं पीळनं - ११३, १२४ पीळेत्वाति – ४६ पुग्गलाधिट्ठानधम्मदेसना - १६७ पुच्छाविस्सज्जनन्ति - ३६७ पुञ्ञकम्मं - १६१ पुञ्ञकिरियवत्थु - १५४ पुञ्ञक्खयेन - ३०० पुञ्ञन्ति - ३०, ६३, २८० पुञ्ञफलं - ६३ पुञ्ञवाति - ३०५ २०३, २८५ पुनीति-४७ पुञ्ञ - ४७, १५२, १६३, २४१, २५२, २७७, ३८५ पुण्डरीकन्ति - १२१ पुण्णचन्दसस्सिरिकं - २५४ पुणाति - ११ - १३८ पुण्णोति - ११ पुथुज्जनकल्याणकोपि पुथुलतोति - २५२ पुति - ५८, ३३७ पुप्फन्ति - २४५ पुरिमसञ्ञानिरोधन्ति - ३३७ दीघनिकाये सीलक्खन्धवग्गअभिनवटीका-२ पुरिमसिद्धीति - २१० पुरिसथामो - ३५ पुरिसन्तरगतायाति - ३१२ पुरिसोति - ८२, ११४ पुरेक्खारोति - २५३ पूरणकिरियायोगे - १८२ पूरणमक्खलिआदयो - ३०९ पूविकाति - ३० Jain Education International पेसाचा - ३८ पेसितचित्तोति - ३२२ पोक्खरणी - १८२ पोक्खरसातीति -- १७९, १८० पोट्ठपादो - ३२४, ३३८ पोत्थकं - ८७ पोत्थनियन्ति - ६ पोत्थलिका - ८५ पोथुज्जनिकसद्धापटिलाभं - १७० पोथुनिका - १७०,२४२ पोनोभविका - ११२ पोराणानि - २८४ पोरी - २४९ पंसुपिसाचकादयोति - २५४ फ फरिस्तीति - ३५७ फलन्ति - ३९, ४०, ९१, १३४, २१०, २४२ फलपच्चवेक्खणञाणन्ति - ३३८ फलसच्छिकिरियाति - ३४२ फलसमापत्ति - ३४७, ३४८ फलसमापत्तिसुखं - ५९ फासुविहरोति - १२३ फीतन्ति - ६४ फुट्ठोति - ४५ फुसतीति – ११८, ३३६ 24 व बन्धनागारिका - ३७ बन्धु - २१५ बलक्कारो - ११५ बलन्ति - ३५, ९७, २६७ बलमत्ताति - १११ बलवरोगो - ३५६ For Private & Personal Use Only [ फ-ब] www.jainelibrary.org


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