Book Title: Siddhchakra Yantroddhar Vidhi Vyakhya Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ श्रीसिद्धचक्रयन्त्रोद्धारविधि - व्याख्या ॥ श्रीसिद्धचक्रयन्त्र ए जैन धर्मनुं एक विशिष्ट आराध्य यन्त्र छे. पांच परमेष्ठी अने ४ ज्ञानादि गुणो एम नव पदोनां तात्त्विक अने तान्त्रिक संयोजनथी निर्मित आ यन्त्रनी विशिष्ट - विस्तृत उपासनानी प्रक्रिया जैन संघमां आजे पण प्रवर्तमान छे. आ यन्त्रनी उपासनानी ऐतिहासिक विगतो माटे इतिहासवेत्ता पं. श्रीकल्याणविजयजी कृत 'निबन्धनिचय'नो आ विषयनो लेख जोवो जरूरी छे. सं. विजयशीलचन्द्रसूरि सिद्धचकनो सीधो सम्बन्ध श्रीपाल - मयणानी कथा साथे जोडायेलो छे. आ बन्ने पात्रोनी कथा, सर्व प्रथम, नागपुरीय बृहत्तपागच्छना श्रीरत्नशेखरसूरिए रचेल 'सिरिसिरिवालकहा ' (१५ मो शतक) मां उपलब्ध थाय छे. ते पूर्वेना श्वेताम्बरसंघना कोई पुरुषे आ बे पात्रो विषे कांई लख्यं होय अथवा आगमोमां ते पात्रोनो कोई उल्लेख होय तेवुं जाणवामां आवतुं नथी. जैनो द्वारा थता नित्यपाठना सूत्ररूप 'भरहेसर' नी सज्झायमां पण आ बेनां नामो गेरहाजर ज छे. श्रीरत्नशेखरसूरिए 'सिरिसिरिवालकहा ' मां श्रीपाल - मयणानी कथा रसप्रद रूपे गुंथी छे. तेमां ज, प्रसंगोपात्त, सिद्धचक्रयन्त्रनुं स्वरूप पण तेमणे दर्शाव्युं छे. ते वर्णननी मुख्य १२ गाथाओ छे, जेनो अर्थबोध जैन तन्त्रविद्याना जाणकारोने ज थई शके तेवी ते गहन छे. ते अर्थो तथा उपासनाविधिना आम्नायनुं रहस्योद्घाटन, कर्ताना ज शिष्य आचार्य श्रीचन्द्रकीर्तिसूरिए (१६मो शतक) ते गाथाओनी सरल अने सुगम व्याख्या करीने करेल छे. आ व्याख्या प्रमाणेनी उपासनाविधि साधे वर्तमानमां प्रचलित उपासना (पूजन) पद्धतिने सरखाववामां आवे तो महदंशे साम्य जोवा मळे छे. अथवा बीजी रीते एम कही शकाय के आ व्याख्या द्वारा उपलब्ध थती पद्धतिनो विनियोग प्रवर्तमान पूजनविधियां करी शकाय, अने ते रीते केटलीक प्रवेशेली विकृतिओने दूर करी शकाय. बे पत्रनी, सम्भवतः १७मा सैकामां लखायेली, निजी संग्रहनी एक प्रतिना आधारे आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. आकृतिओ प्रतिलेखके ज आलेखी बतावेल छे. गा. ५नी व्याख्यामां निर्दिष्ट 'लब्धिकल्प'नो सम्बन्ध सूरिमन्त्रकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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