Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 02
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 10
________________ (प्रकाशकीय निवेदन 'संसार से तारे वह तीर्थ' इन वचन के अनुसार जंगम तीर्थ विहरमान आदि श्री जिनेश्वर देव तथा साधु-साध्वी भगवंत है। और स्थावर तीर्थ श्री शत्रुजय आदि तीर्थ है। इन तीर्थों की यात्रा द्वारा अनंत आत्माएँ संसार से तिर गई हैं, और तिरेगी। इन तीर्थों का पूजन, आलंबन सम्यग्दर्शन आदि की निर्मलता द्वारा आत्मा के शिवपद का साधन बनता है। श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन का आयोजन पूज्य हालार देशोद्धारक आचार्य देव श्री विजय अमृत सूरीश्वरजी महाराजा के पट्टधर प्राचीन साहित्योद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने किया और उसके संकलन अनुसार तीर्थों की प्रतिकृतियाँ, इतिहास की जानकारी आदि प्राप्त करने के लिए प्रथम बार सं. २०३८ में शाह नेमचंद खीमजी पारेख, शाह नेमचंद वाधजी गुढका, शाह शांतिलाल झीणाभाई घनाणी तथा फोटोग्राफर श्री नरेशभाई वजुभाई सोमपुरा गये। कच्छ, राजस्थान आदि का कार्य किया। दूसरी बार श्री शांतिलाल झीणाभाई, श्री कमलकुमार शांतिलाल, श्री दिलीप कुमार चंदुलाल तथा श्री नरेशभाई फोटोग्राफर गये और उन्होंने यू.पी., बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, आदि का काम किया। तीसरी बार शाह महेन्द्रभाई सोजपाल, गोसराणी, श्री रामभाई देवसुरभाई गढ़वी, श्री नरेश भाई तथा श्री प्रवीणचंद्र मगनलाल गये उन्होंने बाकी राजस्थान, गुजरात आदि का काम किया चौथी बार भी यह लोग गये और बाकी गुजरात, सौराष्ट्र का काम किया। पांचवी बार चालू वर्ष में यही गये और आंध्र, तमिलनाडू, केरला, कर्नाटक तथा थोड़ा महाराष्ट्र किया। छठी बार रतलाम से सुभाष मेहता और श्री चौपड़ा तथा श्री जोशी २०५० में गये और पंजाब, काश्मीर तथा बाकी का यू.पी., बिहार का कार्य किया। महाराष्ट्र, कर्नाटक का बाकी कार्य राजकोट से श्री जिनेश नरेन्द्र शाह गये और उन्होंने यह कार्य पूर्ण किया। प्रथम उत्तर के देश, राजस्थान, पंजाब, यू.पी, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, मध्यप्रदेश का प्रथम भाग तैयार करना था और दूसरे भाग में गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, तमिलनाडू, केरला, कर्नाटक और विदेश ऐसे लेने थे। परंतु गुजरात, राजस्थान विदेश विभाग तैयार हो जाने पर प्रथम भाग उसका लिया है और बाकी रहे तीर्थ दूसरे भाग में आयेंगे। __ यह कार्य बहुत बड़ा और कठिन है। जिससे तैयार करने में बहुत ही परिश्रम लगता है फिर भी पू. आचार्यदेव श्री विजयजिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की सर्वतोमुखी प्रतिभा के कारण यह कार्य साकार हुआ है। इस प्रकाशन के पूज्य श्री प्राण बने हैं। इस कार्य में रस लेकर निस्वार्थ भक्ति-भाव से अनेक कष्टों का सामना कर प्रतिनिधि मंडलों ने तथा फोटोग्राफर श्री नरेशभाई (जामनगर) श्री जिनेशभाई (राजकोट) आदि ने आत्मीय भाव से यह कार्य करके सुंदर प्रयत्न किया है यह सफलता का सोपान है उस प्रतिनिधि मंडल के हम बहुत ऋणी हैं। इस कार्य में हमारे प्रयत्न की कमी के कारण सभी शुभेच्छकों, ग्राहक हमें मिल नहीं सके उसके साथ शुभेच्छक ग्राहक बारबार याद दिलाते हैं और यह कठिन कार्य तुरंत नहीं हुआ उनको बुरा भी लगा ऐसा हो सकता है और जिससे इस कार्य के लिए शक्य प्रयत्न नहीं हो सका। परंतु हमारे प्रति आत्मीय भाव और हितबुद्धि से पूज्य आचार्यदेव श्री मुनिराज, पू. साध्वीजी महाराज तथा धर्मप्रेमी बंधुओं ने शुभेच्छकों तथा ग्राहकों के लिए प्रेरणा करके तथा शुभेच्छक तथा ग्राहक बनकर सहयोग दिया है वह हमारे कार्य में शीघ्रता और सहयोग का कारण बने है इसलिए उनका बहुत-बहुत आभार मानते हैं।

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