Book Title: Shrutsagar Ank 2013 11 034
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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भगवतीसूत्र गहुँली तथा गुरुगुण गहुँली
साध्वीश्री मधुरहंसाश्रीजी
साध्वीश्री रत्नहंसाश्रीजी परिचय ___गहुंली एटले गुजराती गीतोनो एक प्रकार. गहुंलीनो मूळ अर्थ घउंनी ढगली एवो' छे. गरुना स्वागत माटे तेमनी सामे करवामां आवती स्वस्तिक वगेरे आकृतिनी रचनाने गहुंली कहेवाय छे. तेमां घउं विगेरे धान्यनो उपयोग थाय छे. वर्तमानमां घउंने स्थाने केवल चोखानी गहुंली काढवामां आवे छे.
अढारमी सदीमां थयेला पूर्णिमागच्छना आचार्य श्रीभावप्रभसूरिए 'गोधूलिकार्थ' नामनी लघुकृतिमा गहुली शब्दनु ज विवरण कर्यु छे. तेमां गहुंली शब्दना छ मंगलरूप अर्थ, दस शब्दार्थ, बार आध्यात्मिक अर्थ, तेर लौकिक अर्थ एम कुल एकतालीस अर्थ बताव्या छे. तेओ जणावे छे के- श्री जिनशासनमां देव अने गुरुनी सामे भक्ति माटे, मंगल माटे अने सिद्धांतनो विनय करवा माटे साथियानी रचना करवामां आवे छे तेने गहुंली कहेवाय छे. तेमना कथन मुजब गहुंली रचनानुं मूळ आगममां मळे छे.
उत्तराध्ययन सूत्रना ३५मां अध्यननी १८मी गाथामां गुरुनां अर्चन, रंजन, वंदन, पूजन, सत्कार, सन्माननो उल्लेख छे. अहींयां रंजननो अर्थ गहुंली छे. लोकमां पण जमणवारमा मिठाइ बनावी होय ते खुटे नहि ते माटे मिठाइनां वासण पासे साथियो करवामां आवे छे तेने गहुंली कहेवाय छे. आम बधां ज शुभ स्थानोमां मंगल माटे गहुंली रचवानो रिवाज बहु पुराणो छे. शुभ स्थानमां मिठाइ वगेरेनी रक्षा माटे गहुंली करीने सधवा स्त्रीओ मंगल गीतो गाती. आ गीतो पण १. जूओ : मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश. सं. जयंत कोठारी, (१९९९) २. श्रीमति जिनशासने देवगुरुप्रमुखपुरतो भक्तिहेतोर्माङ्गल्यहेतोः सिद्धांतविनयहेतो: लोकेऽपि च
सुखभक्षिकाभाजनसमीपभूमण्डले तदक्ष्यहेतोः स्वस्तिकरचना क्रियते । .... यत्तस्तत्राष्टादशी गाथाअच्चणं रयणं चेव वंदणं पूअणं तहा । इड्डीसक्कारसम्माणं मणसा वि न पत्थए । अत्र रयणं रञ्जनम् इत्यस्यार्थो 'गुंहली' इति कथित इति । स्वस्तिकरचनाया नाम गोधूलिका इत्यादि संस्कृते । प्राकृते गुंहुलिका गुंहुली इत्यादि नामांतराणि कथ्यते । (गुंहलिकापरपर्यायगोधूलिकार्थ:-जैनधर्मवरस्तोत्र पत्र १२९)
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