Book Title: Shrutsagar Ank 2013 11 034
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ नवम्बर-१३ गहुली स्वरूप वधु भासे छे. परंतु प्रतना अंते इति श्रीस्वाध्याय लख्युं होवाथी कृतिनुं नाम विजयदेवेंद्रसूरि स्वाध्याय एवं राख्युं छे. रचनामां गुजरातीनी साथे हिंदी अने राजस्थानी भाषानी छांट पण जोवा मळे छे. एकंदरे कृति भाववाही अने गेयप्रधान छे. कृतिनी बीजी कडीमां विजयदेवेंद्रसूरि महाराजना जन्मस्थान अने माता-पितानी विगतो आलेखाई छे. तो त्रीजी अने चोथी कडीमा आचार्य महाराजनी पाटस्थापना विशेनी विगतोने कविए प्रस्तुत करी छे. पांचमी अने छठी कडीमां आचार्य महाराजनी वाणीने वादळना पाणी अने तेजना किरणो जेवी पारंपरिक उपमा साथे सरखावी छे. तो आचार्य महाराजना गुणोनो परिचय कराववा विविध उपमाओथी परिचय प्रस्तुत कर्यो छे. कृतिनी सातमी, आठमी, अने नवमी कडीमां कविए विजयदेवेंद्रसूरि महाराजना तेज अने प्रभावनी वात करी छे. तो साथे साथे पाट परंपरा अखंडतानो भाव अने शासनदेवीना सान्निध्यनी जंखना व्यक्त करी छे. कृतिना अंते कविए दलपत लखी पोतानो नामोल्लेख को छे. __ कर्ता परिचय :- प्रस्तुत् कृतिना कर्ता विजयदेवेंद्रसूरि महाराजना आज्ञानुवर्ति होवानी संभावना छे. प्रस्तुत् कृतिनी हस्तप्रत अने ज्ञानमंदिरमां संगृहीत एक तीर्थमाळा स्तवननी हस्तप्रतना अंते प्रतिलेखक तरीके दोलतरुचिना नामनो उल्लेख मळे छे. अने बन्ने हस्तप्रतोना आलेखन अने अक्षरमां पण महदंशे साम्यता जोवा मळे छे. आथी बन्ने प्रतोना प्रतिलेखक तरीके दोलतरुचि होवा संभवे छे. आ ज दोलतरुचि कृत तीर्थमाळा स्तवन ढाळ-३नी छेल्ली कडीओमां आपेल गुरुपरंपरा अनुसार दलपतरुचिविजयजीना गुरुनुं नाम लालविजय हतु, अने एमना गुरुनु नाम दलपतरुचि हतु, तीर्थमाळा स्तवनमा मळती गुरुपरंपरा अनुसार उपरोक्तकृतिना कर्ता दोलतरुचि विजयना दादागुरु तरीके उपरोक्त कृतिना कर्ता तरीके दलपतरुचि होवानी संभावना व्यक्त थाय छे. शशीनीधीतीसावरषे( १९३०) आसाढ बीज महाभाग्य ए दलपत पाटे लाल शीष्य, दोलतरुचि शिवमाग्य ए. १० दलपतरुचिविजयना गुरु अने एमना जन्म, दीक्षा विगेरे संबंधी विशेष हकीकतो प्राप्य थई शकी नथी, बंन्ने कृतिना कर्ता विशे विद्वानो वधु जणावे ए ज आशा साथे... प्रत परिचय : विजयदेवेंद्रसूरि पाटमहोच्छव स्वाध्यायनी प्रत अमारा ज्ञानमंदिरमा ५२५४७ नंबरना क्रमांक पर नोंधायेली छे. प्रतना लेखन संबंधी समय अने स्थळनी विगतो लखाई नथी, पण प्रत अने लेखनशैली जोवाथी प्रत प्रायः २०मी सदीनी होवानी संभावना छे. प्रतनुं परिमाण १४.५० x ११ छे. प्रतमां कुल १ पत्र ज छे. प्रतमां For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36