Book Title: Shrutsagar Ank 2013 11 034
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर-३४ २० विवाहप्रज्ञप्ति (अथवा व्याख्याप्रज्ञप्ति) छे. आ सूत्र आगमोमां सहुथी मोटुं छे. तेमां अनेक व्यक्तिए प्रभने पछेला प्रश्नोनो संग्रह छे. मोटे भागे प्रश्नो श्री गौतमस्वामी द्वारा पूछाया छे. तेथी तेमां गौतमस्वामीनुं नाम धणी वार आवे छे. जेटली वार गौतमस्वामीनुं नाम आवे तेटली वार नाणुं एटले पैसा मूकी भगवतीसूत्रनुं पूजन करवाथी सम्यग्ज्ञान वधे छे. आ रीते पूजन करी सूत्र सांभळवाथी सूत्रनुं बहुमान थाय छे. साथे ज आ सूत्र सांभळती वखते साधु तथा साधर्मिकनी भक्ति पण मनमां प्रेम धरी करवी जोइए. ____ आ सूत्र सांभळनार दरेकने प्रभावना अर्पण करवी जोइए. आ सूत्र संभळावनार गुरु पर भक्तिराग धारण करवो जोइए. श्रीभगवतीसूत्रना बहुमानथी आ भवमां अने परभवमा मनोवांछित कार्य सिद्ध थाय छे अने परंपराए मोक्ष मळे छे. आम आ लघुकृति श्रीभगवतीसूत्रनी माहिती आपवा साथे तेना श्रवणथी थता लाभर्नु वर्णन करे छे. भगवतीसूत्रनी गहुंली पंचमांग भगवति जांणीये रे, जिहां जिनवरना वचन अथाह रे । हिमवंत पर्वतसेंती नीकळ्या रे, मानुं गंगासिंधु प्रवाह रे ॥पं. १॥ सूरपन्नत्ति नामे पाहुडो रे, जेहनो छे उदार उवांग रे।। सूत्रतणी रचना दरीया जिसी रे, माहिला अर्थ जस जलतरंग रे ॥पं. २।। इहां तो श्रुतखंध एक अति भलो रे, एकसो एक अध्ययन उदार रे । दस हजार उद्देसा जेहना रे, जिहां कणे प्रश्न छत्तीस हजार रे ॥पं. ३॥ पद तो दोय लाख अरथे भर्या रे, उपर सहस अठ्यासी जांण रे । लोकालोक सरूपनी वर्णना रे, विवाह पण्णत्ती अधिक प्रमाण रे पं. ४॥ गौतम नामे नांणु मुंकीए रे, समकित ज्ञान उदय होय जेम रे । कीजिए साधु तथा सांमी तणी रे, भक्ति जुगति मन आंणी प्रेम रे ||पं. ५॥ करीए पूजा ने परभावना रे, धरीए सद्गुरु उपर राग रे । सुणीए सूत्र भगवती रागसू(सुं) रे, तो होय भवसागरनो त्याग रे पं. ६॥ १. टीकाकार श्री अभयदेवसू. म. ए तेना विविध अर्थ- विवरण कर्यु छे. २. प्रभावना - प्रेम, बहुमानपूर्वक अपातुं द्रव्य के वस्तु-पहेरामणी. For Private and Personal Use Only

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