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श्रुतसागर - २७ पाठशाला, धर्मशाला, मन्दिर, सेनेटोरियम आदि की स्थापना हुई है। छरी पालित यात्रासंघ, उपधान तप आदि अनेक धार्मिक कार्यों के आयोजन करवाये गये। पूज्यश्री अपने सतत विहारक्रम में विविध भाषाओं में लिखित हजारों हस्तलिखित एवं मुद्रित पुस्तकों को संगृहीत कर विजापुर जैनसंघ को अर्पित किया और उसकी सुव्यवस्था हेतु श्रीसंघ ने एक विशाल ज्ञानमन्दिर की स्थापना करवाई। आप शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु सदैव जाग्रत रहे। आपने एक ऐसे ज्ञानमन्दिर की कल्पना की थी, जो आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण एवं शास्त्रों से समृद्ध हो तथा उसके संचालन हेतु पर्याप्त स्थाई फंड हो। आपकी कल्पना को राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की स्थापना कर साकार किया है।
शिष्य परिवार - इनके मुख्य शिष्यों में श्री अजितसागरसूरि, श्री ऋद्धिसागरसुरि, श्री कीर्तिसागरसूरिजी आदि हैं। आज तपागच्छ के सागर समुदाय में विद्यमान विशाल साधु-साध्वी उनके शिष्य परिवार के सदस्य हैं।
विरल विभूति श्री बुद्धिसागरसूरिजी माटी से महामानव तक की विराट यात्रा का नाम है। वैष्णव किसान परिवार में जन्मे बालक पर एक जैन सन्त का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उसका जीवन जैनत्व के अद्वितीय प्रकाशपुंज से आलोकित हो गया। सतत् स्वाध्याय, प्रभुभक्ति, गुरुजनों के प्रति आदर, साहित्यसृजन, योगसाधना और चारित्र्यनिष्ठा उनके जीवन का प्रमुख अंग था । आपके साहित्य में भी इन गुणों की झलक मिलती है। योगसाधना ने इनके जीवन को अद्भुत रूप प्रदान किया। इनके उदगार इनके आत्मानन्दी होने की गवाही देते हैं। इनकी योगसाधना ने इन्हें योगनिष्ठ आचार्य के रूप में प्रसिद्ध कर दिया । __ परम पूज्य आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब की १४०वीं जयन्ती का वर्ष मनाया जा रहा है, इस मंगलमय वर्ष में पूज्यश्री के गुणों का स्मरण करते हुए उनके पावन चरणों में हम उन्हीं के द्वारा रचित पंक्तियों के माध्यम से उनकी वन्दना करके अपना जीवन कृतार्थ करें
पगलां पड्यां त्हारां अहो ज्यां तीर्थ ते मारे सदा तव पादनी धूलि थकी, न्हातो रहुं भावे मुदा तव पाद पद्मे लोटतां, पापो कर्या रेहवे नहि, तें चित्तमा जे मानीयु, ते मान्य तो मारे सही...।
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