Book Title: Shrutsagar Ank 2012 03 014
Author(s): B Vijay Jain
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. राष्ट्रसंत आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रवचन प्रसादी 'वसुधैव कुटुम्बकम्' यह सारा जगत मेरा कुटुम्ब हैं, परिवार है, उसके साथ परिवार जैसा ही व्यवहार अपने को करना है. मुझे उस शब्द से जरा प्रयोजन नहीं, उस कार्य से प्रयोजन नहीं, जो अपने मतलब के लिए निर्माण किये गये. धर्म कोई ऐसा लंगड़ा नहीं, पंगु नहीं, इतना कमजोर नहीं है. वह पूर्ण है. सबल है. वह जगत की हर आत्मा को रक्षण देने में समर्थ है; परन्तु वह वहीं पर रहेगा जहां शुद्ध हृदय हो, जहां प्रेम और मैत्री का वातावरण हो, वहीं धर्म का निवास होता है. अन्यत्र धर्म कहीं नहीं मिलेगा. भगवान तो चले गये मन्दिर से, आपके व्यवहार को देखकर, प्राण नहीं रहा ऐसी गन्दी जगह पर कोई व्यक्ति रहने को तैयार नहीं तो भगवान कहां रहेंगे? जहां पवित्रतता ही न हो, जहां प्रेम का अभाव हो वहां परमात्मा का भी अभाव मिलेगा. यहाँ तो प्रेम के माध्यम से ही परमात्मा का आगमन होता है. प्रेम गली अति सांकरी या में दो न समाय, कबीर दास ने कहा कि यह तो प्रेम की गली है. यह ऐसी गली है जिसमें मात्र आप या केवल परमात्मा को ही लेकर जा सकते हैं. आपके साथ आपका संसार नहीं। चलेगा.आपके सांसारिक विचार को वहाँ प्रवेश नहीं मिलेगा. अन्य विचार से शून्य होकर मात्र प्रेम से परिपूर्ण होकर ही परमात्मा के द्वार तक जा। सकते हैं. अपने विचार को छोड देना पडेगा. अपने स्वयं के विचार का यहां कोई मूल्य नहीं है, आध्यात्मिक साधना में प्रवेश करने से पूर्व इस धार्मिक वस्तु का प्राथमिक परिचय आपको प्राप्त करना पड़ेगा; जीवन व्यवहार आपको सुन्दर बनाना पड़ेगा। उसके बाद आपको अन्दर प्रवेश मिलेगा. प्रवेश भी तभी मिलता है जब समर्पण का भाव हो, अगरबत्ती सुगन्ध देती है. अगरबत्ती को देखिये, उससे सीखिये, वह जलकर भी जलाने वाले को सुगन्ध देती हैं. दीपक प्रकाश देता हैं. आपको मार्ग दर्शन देता है. आत्मा में ज्ञान के प्रकाश को प्रचारित करने की प्रेरणा देता है. जलकर भी प्रकाश देता है. हम क्या देते हैं? गाय घास खाकर के आपको दूध देती है. इन्सान क्या देता है? वृक्ष आपको छाया देता है, फल देता है,लकड़ी देता है. वह अपना सब कुछ सर्वस्व अपना अर्पण करता है. इन्सान क्या देता है? मरने पर भी नौ की लकड़ी नब्बे खर्च.मर गया तो भी खर्च. श्राद्ध करो, जीमन करो, उसे जलाओ कितना लफड़ा? इससे तो जानवर अच्छे हैं, जीवित अवस्था में भी अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं. कितना बेचारे मौन भाव से अपना सर्वस्व अर्पण करते है.कितना बड़ा बलिदान है उनका? मरने के बाद भी अपना तन देकर जाते हैं. चमड़ा देकर जाते हैं. इन्सान क्या देता है? जीवित अवस्था में भी खतरनाक और मरने पर भी समस्या पैदा करके जाता है. यहां तो इन्सान बनके आये, देव बनने का प्रयास करें इन्सानियत हमारे अन्दर आ जाये, आज वह इन्सानियत हमारे अन्दर नहीं रही, जो किसी जमाने में थी. यह आर्य संस्कृति थी, सारी दुनिया को आदर्श देती थी, संस्कार देती थी, शिक्षा देती थी.अब सारी दुनिया हमें शिक्षा देने आती है. जरा विचार करना पड़ेगा, हमारी क्या दुर्दशा है. वैचारिक दुष्काल है. इस देश में बाहर का दुष्काल नहीं. बाहर का राष्काल कभी खतरनाक नहीं होता. इन्सान के अन्दर विचार का दुष्काल आ गया. सदविचार का दुष्काल आ गया है. प्रेम का दुष्काल इतना भयवर है, अन्तर से परमात्मा ही चला गया. डेड बॉडी लेकर हम घूम रहे हैं. मुझे की तरह हम चल रहे हैं. जीवन के अन्दर विकृति का दुर्गन्ध आ रहा है. जीवन सड़ चुका है. जीवन का जीर्णोद्धार करें, नव निर्माण करें, आत्मा को निर्मल और पवित्र बनायें. प्रेम का मन्दिर इस जीवन को बनाये बिना आमन्त्रण ही परमात्मा आपके अन्तर में प्रतिष्ठित हो जायेंगे. मेरे शब्दों से सगन्ध आने लग जाये. मेरा जीवन संसार को सुवासित बना जा मेरा जीवन चलता फिरता स्कूल जैसा बन जाये. अनेक व्यक्तियों को प्रेरणा देने वाला बन जाए. ('गुरुवाणी पुस्तक, पेज-२७८-२७९), is-45शन सोन्य: શ્રી અરવિંદભાઈ તારાચંદ શાહ પરિવાર એશિયન સ્ટાર પ્રા. લી. મુંબઈ Book-Post NAVNEET M.; 9825261177 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20