Book Title: Shrutsagar Ank 2012 02 013
Author(s): B Vijay Jain
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पार्श्वनाथ चौबीसी संगमरमर, प. भारत, वि. सं. 1409 24 तीर्थंकरों का सम्राट संप्रति संग्रहालयमां संग्रहित प्रदर्शित चितार्थ बहुमूल्य शिल्पांनो तथा प्राचीन शैलीमां खालेजित बहुरंगी सचित्र हस्तप्रतना पाना. समूह-मूलनायक मध्य में विराजमान हैं. जबकि दोनों ओर पद्मासनस्थ मुद्रा में 22 तीर्थकर है। (एक तीर्थंकर सहित परिकर का उपरी भाग अनुपलब्ध है) । weav नय BEZPLLBILL परि वाया मामलोगंमि । अवसं सपा साई सरि यर्व ॥ भवविरनिनि कम नमी राया सो बोगस मि वर गवारा ि रा मरियमले वयं समपरिस त www.kobatirth.org श्रुतधर लगवान लस्वामी रविश आवश्यक सूत्री प्रासलाधामां 16 भी सहीमा अगा घर सजायेल जा सचित्र हस्त प्रतना 11 पाना छे. प्रेमां २ पाना चित्रमय छे. सा प्रतनी सार्धं 26.5 x 11.5 छे, पर नीचे अष्टमंगलनी सुंदर सामस्थमा नालेजाबेली . साधे सूत्री शुभां पहेश खाता खायार्य लगवंत रखने जन्मे भाभलेला विनयवंत शिष्यो जलावाया छे. નોવિ कनका Cedronety 30t मयमा मायाकामग स्ट रामप्रस लिया श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जै. श्वे. मू.पू. जिन मंदिर-आगरा से प्राप्त यह प्रतिमा बलुआ पत्थर में निर्मित व ध्यानमुद्रा में आसीन पद्मासनस्थ प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की है. कंधे पर अंकित लटें इनकी स्पष्ट पहचान है. अष्णीष शिखा, घुँघराले केश, चौड़े कंधे, वीतराग (शांत व प्रसन्न भावयुक्त मुखाकृति, सुगठित शरीर व शुभ लक्षणों से युक्त यह प्रतिमा मथुरा शैली की अनुपम कृति है. प्रतिमा की पादपीठ पर अंकित लेख में संवत 1974 वैसाख सुदि 10... स्पष्ट रूप से वाच्य है. आगे का लेख अवाच्य है. म (162 नियमम २मा For Private and Personal Use Only प्रस्तुत धानुं उत्तराध्ययन सूत्र (सावरि पंथपाठ) नी 128 पानामां प्राकृतभाषामा लजायेल हस्तप्रतनुं 30 भुं पासुं छे. पाटा जाते ११ भी सहीमां કાગળ ઉપર પ્રશિલિખિત આ પ્રામાં કુલ 12 विश्रमय भागानो छे. या प्रसमी सार्धं: 25.8 x 11 'थ भेटली छे. मि मिविसायपर मादिि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यिनामिय मदिरा भगवर नारायणदि धमदादिमा कामदारम बालियन नि म जयमानमियामेन

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