Book Title: Shrutsagar Ank 1996 07 004
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 2
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, द्वितीय आषाढ २०५२ की ओर से आचार्यश्री का अभिवादन किया और बड़ी श्रद्धा के साथ आशीर्वाद ग्रहण प्रतिष्ठा हेतु पधारे. आपकी पावन निश्रा में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी की प्राण | किये. इस अवसर पर प्रधानमंत्रीश्री का स्वागत नेपाल जेन परिषद के अध्यक्ष श्रीमान प्रतिष्ठा बड़े ही धूम-धाम से सम्पन्न हुई थी. हजारों श्रद्धालुओं ने दूर-दूर से आकर | चमचन्दजी चोरड़िया ने किया नया थी शुभ करणजी छाजेड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किये, अपने को धनभागी माना था. हरिद्वार में यह पहला जिन मंदिर स्थापित हुआ है और दिन प्रतिदिन प्रगतिपथ पर अग्रसर है. याद रहे यहाँ पर अन्य धर्मावलंबी धुरंधर आचार्य आदि विविध सन्तों महन्तों द्वारा आचार्यश्री का अभूतपूर्व अभिनन्दन यमनिष्टासन्यपण समारोह मनाया गया था. अनन्तर आचार्यश्री आगरा-शौरीपुर-कानपुर-वाराणसी आदि महानगरों में धर्मोपदेश द्वारा शासन प्रभावना करते हुए २० तीर्थंकरों की पवित्रतम निर्वाण स्थली श्री समेतशिखरजी पधारे. तीर्थ स्पर्शना कर भाव विभोर बने. शिखरजी से विहार कर कलकत्ता महानगर में (भवानीपुर) चातुर्मास करने पधारे. आचार्यश्री के चातुर्मास कराने की कलकत्ता के अग्रगण्य जैन श्रेष्ठियों की विगत १० साल की भावना सन् १९९५ में फलवती हुई थी. आचार्यश्री का यह चातुर्मास कलकत्ता के पिछले ५० साल के इतिहास में अद्वितीय बना रहा. प्रवचन के माध्यम से हजारों जैन-जैनेतर भव्यों ने अपने जीवन बाग को चेतना के उर्वीकरण से नवपल्लवित किया. जिस भव्यता-उत्साह-उमंग पूर्ण वातावरण में आचार्यश्री का चातुर्मास परिपूर्ण हुआ वह तो कलकत्ता के जैन समाज में चिर स्मरणीय रहेगा. हावड़ा मल्ली फाटक के प्रतिष्ठा पर आपकी प्रेरणा से साधार्मिक बंधुओं के लिये समृद्ध दि.१९ मई को आचार्यश्री के दर्शन हेतु नेपाल नरेश महाराजाश्री वीरेन्द्र विक्रम स्थायी फंड एक ही उद्बोधन से हो गया था. शाहदेव तथा महारानीश्री ऐश्वर्य राजलक्ष्मी देवी शाह पधारे. राज दम्पत्ति पूज्य कलकत्ता का यशस्वी चातुर्मास परिपूर्ण कर पदयात्रा संघ, अंजनशलाका, आचार्यश्री के दर्शन कर धन्य बने. शिल्प स्थापत्य युक्त नूतन जिन मंदिर में राज प्रतिष्ठा आदि अनेकविध धर्मानुष्ठान करते हुए आचार्यश्री पाटलिपुत्र से होकर | दम्पत्ति ने दर्शन वंदन किये. स्वयं आचार्य भगवंत ने मंदिर की जानकारी उपलब्ध नेपाल की ओर प्रस्थान किये. नेपाल की धरती को अपने पवित्र चरणों से पावन कराई. मंदिर के भंडार में महारानी ने अपने कर कमलों से चाँदी के सिक्के डालकर करते हुए पर्वतीय कठिन मार्गों से विहार कर भयानक जंगल-पर्वतों की हारमाला | अपनी श्रद्धा-भक्ति व्यक्त की. महाराजा को जैन धर्म के विषय में नेपाल और भारत को पार कर नेपाल की राजधानी काठमांडौ नगर पधारे. नेपाल में आप जैसे महान | की ऐतिहासिक परंपराओं की जानकारी देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि सदियों पहले जैनाचार्य का सदियों बाद पदार्पण होने जा रहा था. अतः आपके स्वागत हेतु स्थानिक नेपाल में जैन धर्म का खूब प्रचार प्रसार हुआ था. हमारे महान जैनाचार्यों ने नेपाल जनसमुदाय व भारतवासियों ने मिलकर भव्य जुलूस द्वारा काठमांडौ में धुम मचाकर | की भूमि पर विचरण कर साधना और सिद्धि प्राप्त कर पूरे विश्व को नयी चेतना जो स्वागत किया वह वर्णन से परे हो गया था. और मार्ग दर्शन दिया था. ___ काठमांडौ के संभ्रांत क्षेत्र - कमल पोखरी में श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परंपराओं के लिये आचार्यश्री के शुभाशिष से नूतन जिन मंदिर तैयार हुआ. जिससे उपर के प्रासाद में श्वे. जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा पूज्य आचार्यश्री की शुभ निश्रा में सम्पन्न हुई. यह मंदिर नेपाल के परंपरागत शिल्प एवं स्थापत्य युक्त बना है. संभवतः २ करोड़ की लागत से यह परिपूर्ण हुआ है. प्रतिष्ठा में आचार्यश्री की निश्रा के प्रभाव से देवद्रव्यादि की उपज हुई वह विदेश की धरती पर सीमा चिह्न रूप मानी जा रही ___आचार्यश्री ने अपने व्यक्तित्व-कृतित्व-सौम्यता एवं विद्वत्ता से भगवान श्री महावीरदेव के अहिंसा प्रधान सिद्धान्तों को काठमांडौ में जन-जन तक पहुँचाया. फलस्वरूप वहाँ के स्थानिक सामाचार पत्र-पत्रिकाओं और टी.वी. आदि माध्यमा ने चित्रों सहित अनेक बार मुक्त कंठ से प्रशंसा की है. आचार्यश्री के प्रवचनों का जादुई असर यह हुआ है कि वहां पर श्वेताम्बर मूर्तिपूजक के सिर्फ २/४ घर थे उ। जगह आज २५० से उपर हो गये हैं. कई लोगों ने व्यसन मुक्त होकर जीवन को उज्ज्वल बनाया है. हजारों लोगों ने लाभ उठाकर सराहना की है. आचार्यश्री ने विदेश की धरती पर जैन शासन की अजोड़ प्रभावना कर अपने को ही नहीं अपनी गुरु परंपरा, रत्न कुक्षी, जन्म स्थली और संस्कृति को गौरवान्वित कर शासन की शान महाराजा न जन धर्म के विषय मकई जिज्ञासा भर प्रश्न किय. आचामत्रान बढ़ायी है. अपनी दार्शनिक छटा से मर्मग्राही उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट किया और कहा कि नेपाल प्रतिष्ठोत्सव के अनन्तर आचार्यश्री के सन् ९४ के दिल्ली चातुर्मास में दिये | के प्रशासन एवं जनता से जो आत्मीयता और स्नेह मिला है वह हमेशा के लिये गये प्रवचनों का संकलन, गुरुवाणी, ग्रंथ का विमोचन किया गया. इस प्रसंग पर याद रहेगा. आचार्यश्री ने यह भी कहा कि नेपाल जैसे एक मात्र हिन्दु राष्ट्र के विकास नेपाल के प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देउवाजी मुख्य अतिथि बने थे. उन्होंने ही ग्रंथरत्न के लिये मैं अपनी शुभकामना करता हूँ. का विमोचन किया था और अपने उद्बोधन में एक महान जैनाचार्य का भारत वर्ष | इस दौरान काठमाडौ में विश्व हिन्दु महासंघ का अधिवेशन आयोजित हुआ. से नेपाल पधार कर नूतन जैन मंदिर की प्रतिष्ठा कराई एतदर्थ नेपाल देश की जनता | जिसमें आचार्यश्री को खास तौर पर आमंत्रित किया गया. इस अधिवेशन में बौद्ध शेिष पृष्ठ ८ पर For Private and Personal Use Only

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