Book Title: Shrutsagar Ank 1996 07 004
Author(s): Manoj Jain, Balaji Ganorkar
Publisher: Shree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, द्वितीय आषाढ २०५२ || इतिहास के झरोखे से || (( वृत्तान्त सागर) सम्राट् सम्प्रति चातुर्मास वि.सं. २०५२ आशित शाह .पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म.सा. सम्राट संप्रति का जन्म ई.स.पूर्व २५७ में हुआ था. संप्रति का जीवन जितना एवं आचार्य श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा प्रेरक है! उतना ही उनका पूर्वभव रोमांचकारी है. जिससे वह सम्राट अशोक के पौत्र जवाहरनगर, जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ, गोरेगांव (प.), मुम्बई. के रूप में जैनधर्मी सम्राट के नाम से प्रसिद्ध हुआ. .पू. आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. ____ संप्रति पूर्वभव में कौशांबी नगर में दुमक नामका भिखारी था. यह उस समय | | एवं मुनि श्री शिवसागरजी म.सा. आदि ठाणा की बात है जब इस पावन धरा पर युगप्रधान आर्य सुहस्ति महाराज विचरण कर जैन. श्वे. मू. संघ विजयनगर, नारणपुरा, अहमदाबाद रहे थे. उस समय बारह साल से दुष्काल चल रहा था. श्रीमंतों को भी एक समय .पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. भोजन करना पड़ता था पर साधु भगवंतों को गोचरी भक्तिभाव पूर्वक मिलती थी. उपाध्याय श्री धरणेंद्रसागरजी म.सा. एक समय आर्य सुहस्ति महाराज के शिष्य श्रीमंत श्रावक के घर से मोदक प्रचुर पन्यास श्री वर्धमानसागरजी म.सा. गोचरी लेकर निकल रहे थे तब द्वार पर खड़ा दुमक भिखारी मोदक प्रचुर गोचरी पन्यास श्री अमृतसागरजी म.सा. देखकर मुनि से मांगने लगा. मुनि ने कहा कि यह भोजन मैं तुम्हें नहीं दे सकता. गणिवर्य श्री विनयसागरजी म.सा. अगर तुम ऐसा भोजन चाहते हो तो तुम्हें दीक्षा लेकर साधु बनना होगा. द्रुमक गणिवर्य श्री देवेन्द्रसागरजी म.सा. आदि ठाणा १२ ने सोचकर मुनि से कहा कि इन दिनों जब खाने के सासे पड़ रहे हैं और लड्डुप्रधान श्री नेमीनाथजी महाराज जैन मंदिर मिष्ठान युक्त भोजन मिलता हो तो मैं दीक्षा लेने के लिए तैयार हूँ. मुनि उसे आर्य अजीमगंज, मूर्शिदाबाद - (प. बंगाल) सुहस्ति के पास ले गये. उन्होंने अपने ज्ञानबल से जैन शासन की महान प्रभावना .पू. आचार्य श्री भद्रबाहुसागरसूरीश्वरजी म.सा. का निमित्त देखकर द्रुमक को दीक्षा दी और उनका नाम रंकमुनि रखा गया. दीक्षा ___ मुनि श्री प्रसन्नकीर्तिसागरजी म.सा. के दिन उपवास करके दुसरे दिन पारणे में मिष्टान्न प्रधान आहार लेने से उन्हें अतिसार | मुनि श्री जयकीर्तिसागरजी म.सा. का रोग हो गया. इनके रोग का योग्य इलाज होने लगा. श्रीमंत घराने के बड़े बड़े वीतराग सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद श्रावक उनकी सेवा कर रहे थे. रंकमुनि की वेदना असह्य हो रही थी. श्रावकों की .मुनि श्री निर्मलसागरजी म.सा. एवं भक्ति देखकर वे सोचने लगे कि जब मैं भिखारी था तो यही लोग मुझे धक्का देकर मुनि श्री पद्मोदयसागरजी म.सा. जैन श्वे. मू. पू. संघ गोल, जिला : जालौर, राजस्थान. निकाल देते थे और आज यही लोग खड़े पाँव मेरी सेवा कर रहें हैं. मुझे वंदन कर | •मुनि श्री विमलसागरजी म.सा. आदि ठाणा २ रहें है. अहो! जैन धर्म की कैसी महत्ता है. इसी शुभ भाव के साथ उनका कालधर्म थोभ की वाडी, उदयपुर (राज.) हो गया. शुभ भाव के फलस्वरूप उनका जन्म मगध के सम्राट अशोक के अंधपुत्र , अधपुत्र सूर्य किरणों का प्रवेश के यहाँ पुत्र के रूप में हुआ. उनका नाम संप्रति रखा गया. • प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी कोबा स्थित श्री महावीरालय में भगवान महावीर - जब वे ६ माह के थे तो धावमाता की बात सुनकर उनके पिता कुणाल ने संगीत | स्वामी के तिलक को २२ मई १९९६ के दिन दुपहर २.०७ बजे सूर्य ने अपनी कला से सम्राट अशोक को प्रसन्न करके वरदान के रूप में अपने पुत्र के लिए | रश्मियों से प्रकाशित किया. इस अ रश्मियों से प्रकाशित किया. इस अवसर पर प. पू. बहुश्रुत मुनि श्री जम्बूविजयजी 'काकिणी' मांगा. 'काकिणी' का गूढ अर्थ राज्यभिक्षा होता हैं. जिससे संप्रति १० | म.सा. आदि ठाणा, राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यमाह की उमर में ही मगध का युवराज एवं अवन्ति का शासक घोषित कर दिया | | प्रशिष्यादि मुनिगण एवं समाज के अनेक गणमान्य नागरिक एवं सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे. जब वे १४ साल के हुए तो सम्राट अशोक ने उन्हें मगध बुलाकर युवराज पद | मुनिराज श्री जम्बूविजयजी म.सा. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में अर्पण किया और अवन्ति के शासक के रूप में राजतिलक किया. पंजाब की सीमा | पिछले दिनों पधारे. आपने श्रुत संशोधन हेतु उपयुक्त हस्तप्रत, ताड़पत्र तथा अन्य पर बार-बार हो रहे यवन आक्रमण को उन्होंने अपनी वीरता एवं कुनेह से दूर किया | सामग्री का अवलोकन कर पूरक माहिती प्राप्त की. आपने यहां चल रही विविध और मगध की सीमा ग्रीस तक फैला दी थी. बाद में आंध्र को भी जीतकर अपने | श्रुत संवर्धन प्रवृत्तियों की प्रशंसा की. राज्य में मिला दिया था. • नित्य प्रति दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों के अतिरिक्त विगत अप्रैल, मई एवं जून एक बार माता श्री शरदबाला से धर्म प्रतिबोध सुनकर और अपने जन्म से पहले | मास में ८,०६५ दर्शकों ने आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मंदिर का अवलोकन जैनाचार्य द्वारा कही गई भविष्य वाणी सुनकर समय आने पर धर्म कार्य करने का किया. दर्शकों की संख्या में यह अभिवृद्धि उल्लेखनीय है. आलोच्य अवधि में ४३३ वचन दिया. ग्रंथों का पठनार्थ उपयोग हुआ. नवीन पुस्तकों की संप्राप्ति आर्य सुहस्ति महाराज १६-१७ साल के बाद जब विहारं करते-करते उज्जैन पधारें तो जैन संघ ने उनके स्वागतार्थ भव्य वरघोड़ा निकाला, भगवान के रथ के . आचार्य श्री कैलाससागरमूरि ज्ञान मंदिर में विगत तीन माह में ४११ ग्रंथों को संप्राप्त किया गया जिनमें से २३६ ग्रंथ भेंट स्वरूप मिलें हैं तथा १७५ ग्रंथों को पीछे आर्य सुहस्ति महाराज अपने शिष्य समुदाय के साथ चल रहे थे. वरघोड़ा इतना क्रय किया गया है. ग्रंथों के सूचीकरण एवं विस्तृत सूचनाओं के कम्प्यूटरीकरण हेतु भव्य था कि सभी नगरजन जैन धर्म की भव्यता देखकर अपने आपको कृतकृत्य पंडितों द्वारा ही सीधे कम्प्यूटर पर सूचनाओं की प्रविष्टी प्रारम्भ की गई है. अभी मान रहे थे. सम्राट् संप्रति भी अपने राजगढ़ के झरोखे से अपने परिवार सहित तक यह कार्य पहले काडों पर तैयार करने के बाद प्रविष्ट किया जाता था. नई पद्धति वरघोड़े का आनंद उठा रहे थे. भगवान के रथ के पीछे चल रहे आर्य सुहस्ति महाराज | में कार्य की शुद्धता के साथ ही समय की भी बचत होगी. पर दृष्टि पडते ही वे उन्हें अपलक नजरों से देखने लगे और आत्ममंथन करने लगे. | कम्प्यूटर केन्द्र की प्रगति : [शेष पृष्ठ ७ पर पिछले दिनों कम्प्यूटर केन्द्र में multi media kit प्रस्थापित किया गया है. था. 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