Book Title: Shripal Katha Anupreksha
Author(s): Naychandrasagarsuri
Publisher: Purnanand Prakashan
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श्रीपाल महाराजा साडाचार वर्ष श्री सिद्धचक्रनी आराधना करी उद्यापन करे छे अने विस्तारथी सिद्धचक्र पूजन भणावे छे. तेनुं सुंदर विशद वर्णन ते ग्रंथमां कर्यु छे. ते संबंधमां श्रीपाले विशिष्ट पीठिका बनावी तेने विविध रंगोथी रंगीने तेनी उपर पंचधान्यथी मांडलु बनाव्युं छे.
कत्थपि विच्छिन्ने जिणहरमि काऊ तिवेइयं पीढं विच्छिणं वर कुट्टिमधवलं नवरंग कयं चित्तं ।।१९८२।।
- सिरि सिरिवाल कहा अर्थ : विशाळ जिन चैत्योनी श्रेष्ठ भूमिमां त्रण वेदिकावाळी पीठिका बनावी विविध रंगोथी चित्रीने (रंगीने) तेनी उपर अभिमंत्रित शाली विगेरे पंचधान्यथी सिद्धचक्रनु मांडलु आलेखq. ।।१९८३।।
त्रिवेदिकावाळी पीठिका अटले होम कुंडमां जेम त्रण स्टेप (पगथियां) होय छे, ते रीते आ पीठिका १-१ इंट अर्थात् ३-३ इंचना स्टेपवाळी बनावाय तो बनी शके छे. पीठिका उपर मांडलु बनाववानो आवो स्पष्ट पाठ होवा छतां सरळता के अज्ञानताने कारणे आजे लगभग सर्वत्र पूजनोनुं मांडलु नीचे भूमि उपर ज बनी रह्यु छे. पूजन भणावनार तो अणजाण होय छे. निश्रादाता पू. गुरुदेवश्री अने क्रियाकारक प्रत्ये पूर्ण विश्वास राखी श्रद्धाळु भावे भावुको पूजनो भणावे छे, तो आवा समये पापना भागीदार कोण?
काची इंटोनी पीठिका बनावी मांडलुं बनावq ते सर्वश्रेष्ठ छे. कदाच ते अनुकूळता न होय तो छेवटे नानी पाट उपर (५/९ इंच उंची) मांडलु बनावाय तो.... विनय धर्म तो सचवाइ जाय. ___ “मांडलुं तो नीचे ज बनावq जोइए” एवी दलील करता केटलाक अणजाण क्रियाकारको सिद्धचक्रनी बीजी चोवीसीना श्लोकमां आवतो ‘भूमंडले' शब्द बतावता होय छे. परंतु आ भूमंडल शब्दनो भूमिमुं तळियु' एवो अर्थ थतो ज नथी.
मंत्रविद् पूज्यपाद् पंन्यास प्रवर गुरुदेव श्री अभयसागरजी महाराजने में दीक्षा
ఉండుడుడు సుడులు
తులు ముందుకు రుతు కు కుకు

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