Book Title: Shri Tankshal Madhye Shreyansjin Chaitya Sambandh
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ अनुसन्धान-५६ ११. संवत् १९१५ना वैशाख सुदि सातमे पञ्चशिखरी जिनालयनुं खातमुहूर्त थयु. (३/१७-१८-१९). १२. देरासरनी आजुबाजुनो परिचय : दक्षिणे कन्याशाळा छे, जेमां नगरनी बालिकाओ भणे छे. तेना प्रवेशभागे सरस वाडी (बगीचो) अने तेनी मध्यमां फुवारो छे. शाळानी आसपास रुद्रयक्षतुं देरु तथा पीरनी मजार छे. (३/२३-२४-२५). १३. अषाड वद ९ थी प्रतिष्ठा शरु थाय छे (५/३), अने बहारनी वाडीए जलयात्रा माटे जाय छे (५/५). भगवानने टंकशाले लावे छे, त्यारे पहेलो पोताना बंगलामां भगवाननी पधरामणी करावे छे (५/१६). १४. उमाभाईनां पत्नी प्रधान वहु (६/२) पोखणां करे छे. श्रावण शुदि सातमे प्रतिष्ठा करी, अने शुदि तेरशे अष्टोत्तरी स्नात्र तेमज धारावाडी करी छे (६/३-४५-६, ११). १५. आ पछी शेठाणीने भाव थतां अक्षयनिधि तप करे छे अने तेमनी साथे ३२० बहेनो पण ते तप आदरे छे (७/२-३). तेनी क्रियादिनुं वर्णन घणुं मजानुं छे. खास तो तेनो वरघोडो नीकल्यो त्यारे मेघे महेर करीने वरसाद पड्यो तेनुं वर्णन घणुं मजानुं छे (७/१६-१७). १६. तपगच्छना गच्छपति श्रीपूज्य विजयदेवेन्द्रसूरि ते वर्षे राजनगरमां छे, अने तेमनी निश्रामा प्रतिष्ठा तथा तपस्या थयानो पण निर्देश जडे छे (७/ २०-२१). १७. शेठाणीने बीजुं मोटुं देरुं बंधाववानो, ९९ यात्रा करवानो, ४५ आगमनुं तप ने ऊजमणुं करवानो मनोरथ हतो तेवू पण कवि वर्णवे छे (८/ ८-९). आ तो थई हकीकतो. कल्पनानो विहार पण कवि यथाशक्ति सरस करतां जणाय छे. पहेली ज ढाळमां शेठाणीनी उदारतानुं वर्णन करतां कवि एक नवतर रूपक प्रयोजे छे : मेरुपर्वत ऊपर दश जातिनां कल्पवृक्षो भेगां मळीने विचारे छे के बळ्युं, आ मेरु ऊपर आम ने आम, कोईने कांई आप्या विना पड्या रहेq एमां आपणो समय नकामो जाय छे ! आपणने आपq ज बहु गमे. आम, अहीं व्यर्थ जीवन गुजारवामां शी मजा? अने ए दशे कल्पवृक्ष मळीने झंपापात करी आपघात करे छे, अने त्यांथी मरीने हरकुंअर शेठाणीना बे हाथनी १० आंगळी तरीके अवतरे छे. तेने लीधे ज आ शेठाणी रात

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