Book Title: Shri Tankshal Madhye Shreyansjin Chaitya Sambandh
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५६
कर जोरी कहुं धरमी सजनां, सूणीयो अरज चित्त लाय जी । भोलपमें गुणवंत सुज्ञानी, काल व्यतीतो जाय जी ॥२॥ सेवो० ॥ छीजत छीनछीन आयु सदा हि, अंजलिजल जिम पीतजी । कालचक्र त(ते)रे शीश भमत हे, सौवत कहा तुं अभीतजी ॥३॥से०॥ समय मात्र परमाद निरंतरे, धर्मसाधना मांहि जी । अथिर रूप संसार लखीने, सज्जन करीये नाहिं जी ॥४॥ से०॥ मेरामेरा म करो वल्लभ, तेरा हे नहि कोईजी ।। भ्राताजी परिवारतणां ए, मेला हे दीन दोय जी ॥५॥ से०॥ तन धन जोबन अथिर कारमा, संध्यारंग समानो जी । सकल पदारथ छे संसारिक, स्वप्नरूप चित्त जानोजी ॥६॥ से०॥ एसा भव निहारीने नित्य, कीजे ज्ञानविचारजी । न मीटे ज्ञानविचार विना कळू, अंतरभावविकारजी ॥७॥ से० ॥ भव परिभ्रमण करतां तुजने, मुशकिल मिलियो छे वेतजी । हिये समज कछु हो तुमारे तो, चेत शके तो चेतजी ॥८॥से० ॥ धन धन शेठ हठीसिंह संघमां, धन धन जसू घर नारीजी । धन धन राजनयरनां श्रावक, शासननां हितकारी जी ॥९॥ से०॥ शेठ प्रेमाभाई तिलक ते पुरनो, उभय उंमाभाई जाणोजी । जेसिंघभाई पुन शेठ श्रीमाली, मगनभाई परि(र)माणोजी ॥१०॥ से०॥ सूत्र सिद्धांतनां जाण सुबुद्धी, श्रीजिनपडिमाना रागीजी । निवड निपुण धोरी जिनमतनां, दृढरंगी बडभागीजी ॥११॥ से०॥ सकल संघ जयवंत प्रवर्तो, राजनयरनो विशेषोजी । आजने काले शासन दीपावे, मन धरी अधिक जगीशोजी ॥१२॥ से०॥ में पण सुजश सुण्यो ए पुरनो, तेहवू परतीक्ष दीर्छ जी । शर्कर पय मिश्रितथी अधिको, लागो मूजने मीठं जी ॥१३||से०॥ धर्मघोषसूरिनां गच्छमांथी, निकसी साखा सुराणो जी । दोलतचंद शीश मोतीचंद, शिष्य भेरवचंद जाणोजी ॥१४॥ से०॥ संवत नंद शशी पण इंदू (१९१५), भाद्रव कृष्ण सुमासोजी । तिथि एकादशमी गुरुवारे, विरच्यो संघविलासो जी ॥१५॥ से०॥

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