Book Title: Shravikanam Chaturvinshati Namaskar
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ फेब्रुआरी-2005 धम्मज्झाण धरेवि मणि कुंथुजिण( णं ) सुविहाणु ॥१७॥ नाहि मग्गउं देव हउं अज्जु नवि रिद्धि देवहं तणी नाहि गंध-रस- फास मग्गउं । परिचतु बंधव सयण इक्कचित्ति तुह वयणि लग्गउं ॥ ए तउं मग्गउं सुरमहिअ अर तित्थयर ! सुसार । सुविहाणं तुह तिमि करहि जिम न पडउं संसारि ||१८|| नाणदंसणचरण - पायारि कविसीसइ सीलगुण धम्मनयरु तवगुणिहिं छज्जइ । संतोससखाइयसहिउ मोहसित्तु (त्रु) तई देव ! भज्जइ ॥ जसु आरक्खि देव हउं रक्खेवा असमत्थु | सुविहाणं तुह मल्लिजिण ! तउं रक्खणह समत्थु ॥१९॥ पवणचालियधयवडाडोव समजुव्वण जठ जिणहु अथिरु सयलु धणधन्नसंच । संजोअ कइवयदियह पुणवि हुंति लोअह अणिच्चाई ( उं ? ) || पिक्खिवि चंचलु मणुअभवु नवि मग्गउ घरवासु मुणिसुव्वय ! सुविहाणु तुह छिंदह भवदुहपास ॥२०॥ सुलह कंकण रयणमय हार वरजुवइ वरमंदिर सुलह रयण सुपसत्थवत्थई । सुसुअंधरस-सवणसुह सुलह सयण अवइरई पसत्थई | चउगय (इ) गमणि भमंतयह इत्तिय दुल्लहु देव ! | सुविहाणं नमितित्थयर ! तुह पयपंकयई (ह) सेव ॥२१॥ तुहं जिणेसरु तुहुं महासत्तु तुह जायवकुलतिलय तरुणभावि परं मयणु जित्तउ । उग्गसेनरवइतणी पदं छड्डिय वरुकन्न । सुविहाणं तुह नेमिजिण ! सिववहुसंग पवन ॥ २२ ॥ दुरिउ नासइ वाहि खय नेइ उवसग्ग विग्घई हरइ दुनिमित्त दुस्सउण नासइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only 65 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6