Book Title: Shravaktva ka Suraksha Kavach
Author(s): Kalpalatashreeji
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 5
________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ से भ्रांत बनाने की चेष्टा की पर सुलसा अपनी आस्था की रेशम डोर से बन्धी रही । सारथि ने धारिणी के सतीत्व को चुनौति दी, उसने जीवन की बाजी लगा दी। सती सुभद्रा ने कच्चे सूत से बंधी चालनी से पानी निकाल कर चम्पानगरी के आवृत द्वार खोल सबको चमत्कृत कर दिया। जयंती, आनन्दश्रावक, सद्दालपुत्र, सुदर्शन और शंखपोखली का नाम साधना, श्रद्धा, तत्त्वदर्शन की गहराई के लिए सुविख्यात है; तेरापंथ के अभ्युदय काल से जुड़े श्रावक समूह दृढ़ आस्था, समझ और बलिदान से हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं। श्रावक सम्बोध में इन सबको उल्लिखित कर पूज्य गुरूदेव ने वर्तमान को अतीत से समृद्ध करने का प्रयास किया है। तत्त्वज्ञान को रेगिस्तान की उपमा देने वाले युवावर्ग को न्यूनतम तत्त्वज्ञान की जानकारी गुरूदेव ने जिस सहजता के साथ देने का प्रयत्न किया, पढ़कर लगता है हम किसी उद्यान में विहरण कर रहे है । तत्त्वज्ञान को अभिव्यक्ति देने वाले कुछ पद्यों की भाषा भी सरल है जिसे बच्चे भी सहजता से कंठस्थ कर सकते हैं. - जैसे - जानूं जीव अजीव में पुण्य पाप की बात । आश्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष विख्यात ।। इसी प्रकार सम्यगदर्शन के लक्षणों का अर्थबोध भी सहज सुगम्य बन पड़ा है शम - हो कषाय का सहज शमन । संवेग - मुमुक्षा वृत्ति सबल । निर्वेद - बढ़े भव से विराग । अनुकंपा - करुणा भाव अमल । आस्तिक्य - कर्म आत्मादिक में । जन्मान्तर में विश्वास प्रबल ।। सम्यग दर्शन मोक्ष का आरक्षण देने वाला पहला घटक तत्त्व है । गुरुधारणा के साथ उसके सिद्धान्त पक्ष को जानना तथा व्यवहार में उसके अनुरूप आचरण में क्या-क्या करना होता है, इसकी स्पष्ट रूपदेखा खींचते हुए पूज्य गुरूदेव ने लिखा हैं Jain Education International 2010_03 २०० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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