Book Title: Shravakopayogi Shramanachar Author(s): Dilip Dhing Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 6
________________ 323 || 10 जनवरी 2011 ॥ जिनवाणी 3. वनस्पति - स्थूल वनस्पति के दो भेद - प्रत्येक शरीरी और साधारण शरीरी। प्रत्येक शरीरी के बारह प्रकार हैं - वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, तृण, लतावलय, पर्वग, कुहुण, जलज, औषधितृण और हरितकाया साधारण वनस्पति के अन्तर्गत कन्द, मूल आदि आते हैं। घटते वन तथा विलुप्त होती वनस्पतियों के कारण जैव विविधता का संकट गहराता जा रहा है। जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। वनस्पति के आश्रय में रहने वाले त्रस-स्थावर जीवों का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है। वनस्पति के संरक्षण से अनेक जीवों का संरक्षण सम्भव है। 4. अग्नि - स्थूल अग्नि के अनेक भेद बताये गये हैं - अंगार, मुर्मुर, शुद्ध, अग्नि, अर्चि, ज्वाला, उल्का, विद्युत आदि।" अग्नि का विनाशक प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये। पर्यावरण की रक्षा के लिए अग्नि के उपयोग का संयम भी आवश्यक है। अब तो बिजली बचाओ (Save Electricity) का नारा भी दिया जाने लगा है। 5. वायु - स्थूल वायुकायिक जीवों के छः भेद हैं - उत्कलिका, मण्डलिका, घनवात, गुंजावात, शुद्धवात और संवर्तक वात। वर्तमान समय में प्रदूषण-मुक्त, स्वच्छ और ताजी हवाओं के लिए नाना प्रकार की वनस्पतियों और वृक्षों का रोपण किया जाता है। इसके अलावा पठारों की सुरक्षा, वन सम्पदा की सुरक्षा, हानिकारक रासायनिक पदार्थोकी समाप्ति, वाहनों व रासायनिक संयंत्रों से निकलने वाले धुएँ पर नियन्त्रण, निजी वाहनों पर लोगों की निर्भरता घटना तथा प्रदूषण-मुक्त उद्योगों की स्थापना आदि उपाय किये जाते हैं। स्थूल जीवों की आगम वर्णित जानकारी से यह प्रेरणा मिलती है कि पर्यावरण और प्रकृति की रक्षार्थ स्थावरकायिक जीवों की हिंसा से बचना भी नितान्त आवश्यक है। आचारांग सूत्र में स्थावरकायिक जीवों की रक्षा की प्रबल प्रेरणा दी गई है। स्थावर और त्रस सभी प्रकार के जीव परस्पर एक-दूसरे के आश्रित होते हैं। इसलिए एक के विनाश में सबका विनाश और एक के संरक्षण में सबका संरक्षण समाहित होता है। ध्वनिप्रदूषण, वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, भूमि-प्रदूषण जैसी समस्याएँ वर्तमान में हमारे सामने बीभत्स रूप में खड़ी हैं। इनके मूल में स्थावरकायिक जीवों की बेहिसाब हिंसा है। इन्ही स्थावरकायिक जीवों के सहारे अनेक प्रकार के त्रस प्राणियों का जीवन निर्भर होता है। वायु, जल, वनस्पति आदि के प्रदूषित होने से इनके सहारे जीने वाले सभी जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है। जल, वायु, भूमि, अन्य सूक्ष्म व स्थूल प्राणी, पेड़-पौधे और मानव का जब अन्तःसम्बन्ध टूट जाता है तो पर्यावरण और पारिस्थिकी संतुलन को नुकसान पहुंचता है। सूक्ष्म जीवों की रक्षा के लिए भगवान महावीर प्रत्येक कार्य-व्यापार में यतना और विवेक की हिदायत देते हैं। सजीव आचारांग के प्रथम अध्ययन के छठे उद्देशक में संसार स्वरूप के विवेचन में त्रस जीवों का उल्लेख है। त्रस जीवों के चार भेद बताये हैं - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय। द्वीन्द्रिय जीवों में शरीर और रसना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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