Book Title: Shravak Vidhi Ras
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ९४ अनुसन्धान-५० को माँ - बहिन समझता है और परिग्रह परिमाण का धारण करता है । दान, शील, तप, भावना की देशना सुनता है और गुरुवन्दन कर घर आता है । वस्त्र को उतारकर अपने व्यापार वाणिज्य में लगता है । व्यापार करते हुए पन्द्रह कर्मादानों का निषेध करता है । प्रत्येक कर्मादान का विस्तृत वर्णन है । (पद्य १ से ३४) 6 व्यापार में जो लाभ होता है उसके चार हिस्से करने चाहिए । पहला हिस्सा सुरक्षित रखे, द्वितीय हिस्सा व्यापार में लगाये, तृतीय हिस्सा धर्म कार्य में लगाये और चौथा द्विपद, चतुष्पद के पोषण में लगाया जाए। (पद्य ३५) I द्वितीय व्रत के अतिचारों का उल्लेख करके देवद्रव्य, गुरुद्रव्य का भक्षण न करे । मुनिराजों को शुद्ध आहार प्रदान करे । इसके पश्चात् द्वितीय बार भगवान की पूजा करे । दीन-हीन इत्यादि की संभाल करे । मुनिराजों को अपने हाथ से गोचरी प्रदान करे । पौषधव्रत धारण करे । प्रत्याख्यान करे । सचित्त का त्याग करे । पिछले प्रहर में पुन: पौषधशाला जावे और वहाँ पढ़े, गुणे, विचार करे, श्रवण करे । सन्ध्याकालीन तृतीय पूजा करे । दिन के आठवें भाग में भोजन करे । दो घड़ी शेष रहते हुए दैवसिक प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान करे और रात्रि के द्वितीय प्रहर के प्रारम्भ में नवकार गिनकर चतुर्विध शरण स्वीकार करता हुआ शयन करे । (पद्य ३६ से ४२) I निद्राधीन होने के पूर्व यह विचार करे कि शत्रुंजय और गिरनार तीर्थ पर तीर्थ की यात्रा के लिए जाऊँगा, वहाँ पूजा करूँगा, करवाऊँगा । साधर्मिक बन्धुओं का पोषण करूँगा । पुस्तक लिखवाऊँगा और अपना व्यापार पूर्ण कर अन्त में संयम ग्रहण करूँगा । वृद्ध और ग्लानों की सेवा करूँगा ॥ (पद्य ४३ से ४४) जल बिना छाने हुए ग्रहण नहीं करूँगा । मीठा जल खारे जल में नहीं मिलाऊँगा । दूध, दही इत्यादि ढंककर रखूँगा । रांधना, पीसना और दलना इत्यादि कार्यों में शोधपूर्वक कार्य करूँगा । चूल्हा, ईंधन इत्यादि का यतनापूर्वक उपयोग करूँगा । अष्टमी चौदस का पालन करूँगा । जीवदया का पालन करूँगा । जिनवचनों का पालन करूँगा । यतनापूर्वक जीवन का I

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