Book Title: Shravak Vidhi Ras
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ अनुसन्धान-५० घाणी कोल्हू अरवहट वाहइ, अनुदलि एलउ जु कुवि करावइ । इणि परि कहियइ कम्मादाणु जंतपीड परिहरइ सुजाणु ॥३०॥ जोयण निग्घिणु अंक दियावइ, वीधइ नाकु मुक्क छेदावइ । गाइ कन्न गल कंवल कप्पइ, सो णिल्लंछणदोसिहिं लिप्पइ ॥३१॥ कुक्कुड कुक्कड मोर बिलाई, पोसंतहं नहु होइ भलाई । सूवा सारो अंनु परेवा, धम्मधुरंधर नहीं धरेवा ॥३२॥ देवु देविणु घणु जीउ म मारहु, सरदह नइ जलु सोसु निवारहु । पनरह कम्मादाण विचारु, जाणिवि करि सूधउ ववहारु ॥३३॥ धारु धमई रस अंजण जोवइ, जूइ रमइ इम दविणु न होवइ । कुवसणि इक्कु वि सुउ न गंमीजइ, तिय आगति चहुं भागिहिं कीजइ ॥३४॥ पहिलउ भागु निधिहिं संवारइ वीजउ पुणु वचसा उवधारइ । तीजउ धम्म भोगु निरदोसु चउथइ दुपय चउप्पय पोसु ॥३५॥ तृतीय भाषा (घत्ता) निसुणि धम्मिय निसुणि धम्मिय, कूड तुल माण । क्रय कूडो परिहरहु कूड लेख तहं साखि कूडिय दुत्थिय दुहिय सवासणिय मित्त दोह न हु वातरुवडिया । देवदव्वु जो गुरुदविणु, भक्खइ भवु अगणंतु । विणु सम्मत्तिण सो भमइ, इम संसारु अणंतु ॥३६।। जिम आहारहं तणीय सुद्धि, मुनि चारितु लीणउं । हाटहं हूतउ घरि पहूतु जउ भोजन वारहं । पूजा बीजी वार करइ, वांसिउ नवि वारहं ॥३७।। दीण गिलाणहं पाहुणहं, संभाल करावइ । सइ हत्थिहिं सूधउ, आहारु मुणिवर विहरावइ । उसह वेसह वत्थ पत्त, वसही सयणासण । अवरु वि जं इहं तित्थ, तं देइ सुवासणु ॥३८॥ जइ तहिं गइ न हुंति साहु, तउ दिवस आलावइ । मनि भावइ आवइ सुपत्तु, तउ भल्लउ होवइ ।

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