Book Title: Shravak Vidhi Ras
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ डिसेम्बर-२००९ कवणु कियउ पच्चक्खाणु, आजु मनि इम संभारइ । वइठउ वाइं सचित्त चाई, आहारु आहारइ ॥३९।। करि भोयणु निद्दहविहूणु खणु इकु वि समत्तउ । पाछिलइ पहरि पुण वि, पोसालह गम्मइ ।। पढइ गुणइं वाचइ सुणेइ, पुच्छेइ पढावइ । अह जु वियालीय करणहारु, सो णिय घरि आवइ ॥४०॥ दिवसहं अट्ठम भाग सो सि जीमेइ सुजाणू । पाछिलए दो घडिय दिवसि चरिमं पचखाणू ॥ संघ(ध?)हं तीजी करिवि, सामाइकु लीजइ । तउ देवसियं पडिकमेवि, सब्भाउ करिजइ ॥४१॥ रत्तिहिं वीतइ पढम पहरि, नवकारु भणेविणु । अरिहय सिद्धि(द्ध?) सुसाहु धम्म सरणइं पइसेविणु ॥४२॥ चतुर्थ भाषा (घत्ता) अंति निद्दह अंति निदह चित्ति चिंतेइ । सेतुंज्जि उज्जिलि चडिवि जिणहं, पूय कइंयहं कराविसु । साहमिय गउरउ करि सुकइय, कइ पुत्थउ लिहाविहातिसु ॥ छंडवि धंधउ इह धरहं, कइ हउं संजमु लेसु । समरि सिलग्गउ कइय हउं फेडिसु कम्मकिलेसु ॥४३॥ वंदिवि दिवसु सूरि वादीययए (?) संभलहु भाविय हु सीख तुम्ह दीजए । गलहु उम्हालए तिन्नि वारा जलं, लेविणु गलणु गलण तुम्हिअइ नीसलं ॥४४॥ सेसकाले वि बे वार जलु गालहो, मीठ-जलि खार-जलि जीव मा मेलहो । राखउ सूकतउ तुम्हि संखारउ वस्त्रहं धोवणु गलिय जलि कारहो ॥४५॥ दुद्ध दहि तिल्लु घिउ तक्क ढंकि वि धरहु । मक्खि-घाए सुहमा जीव तहिं पडि मरहु ।

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