Book Title: Shraman evam Shramani ke Achar me Bhed
Author(s): Padamchand Munot
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 4
________________ 310 जिनवाणी जबकि साधुओं को ऐसे सभी स्थानों पर रहना कल्पता है। (बृहत्कल्प सूत्र) 10. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को एक दूसरे के स्थानक / उपाश्रय में अकरणीय क्रियाएँ निर्ग्रन्थों को निर्ग्रन्थिनियों के स्थानक / उपाश्रय में खड़े रहना, बैठना, लेटना या पार्श्व परिवर्तन करना (त्वग्वर्त्तन), निद्रा लेना, प्रचला संज्ञक निद्रा लेना, ऊंघना, अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार ग्रहण करना, मल, मूत्र, कफ और सिंघानक - नासिका मैल परठना (परिष्ठापित करना), स्वाध्याय करना, ध्यान करना या कायोत्सर्ग कर स्थित रहना नहीं कल्पता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थिनियों को निर्ग्रन्थों के स्थानक / उपाश्रय में खड़े रहना यावत् कायोत्सर्ग कर स्थित रहना नहीं कल्पता है। (बृहत्कल्प सूत्र) 11. अवग्रहानन्तक और अवग्रह पट्टक धारण का विधि-निषेध यहाँ प्रयुक्त अवग्रहानन्तक और अवग्रह पट्टक शब्द गुप्त अंगों को ढकने के लिये प्रयुक्त होने वाले वस्त्रों के लिये आए हैं । अवग्रहानन्तक लंगोट या कौपीन के लिये तथा अवग्रह पट्टक कौपीन के ऊपर के आच्छादक के लिए प्रयुक्त हुआ है। साधुओं के अवग्रहानन्तक और अवग्रह पट्टक धारण करना- अपने पास रखना और उपयोग में लेना नहीं कल्पता है। साध्वियों को इनका धारण करना, अपने पास रखना और उपयोग में लेना कल्पता है। (बृहत्कल्प सूत्र) 12. साध्वी को एकाकी गमन का निषेध 10 जनवरी 2011 निर्ग्रन्थिनी को एकाकिनी होना नहीं कल्पता है। एकाकिनी निर्ग्रन्थिनी को गृहस्थ के घर में आहारार्थ प्रविष्ट होना और निकलना नहीं कल्पता है । निर्ग्रन्थिनी को अकेले विचार भूमि (उच्चार- प्रस्रवण विसर्जन स्थान) और विहार भूमि ( स्वाध्याय स्थान) में जाना कल्पनीय नहीं कहा गया है। साध्वी को एक गाँव से दूसरे गाँव एकल विहार करना एवं वर्षावास एकाकी करना कल्पय नहीं होता । विहार तथा प्रवास में कम से कम तीन साध्वियाँ होना आवश्यक है। गोचरी आदि में कम से कम दो साध्वियों का होना आवश्यक है। (बृहत्कल्प सूत्र ) 13. साध्वी को वस्त्र - पात्र रहित होने का निषेध साध्वी का वस्त्र रहित होना तथा पात्र रहित होना नहीं कल्पता है। इसीलिये साध्वी जिनकल्पी नहीं बन सकती। (द्रष्टव्य- आचारांग सूत्र, द्वितीय श्रुतस्कंध, अध्ययन 1, उद्देशक 3, गाथा 20 ) 14. साध्वी के लिये आसनादि का निषेध (i) साध्वी को अपने शरीर का सर्वथा व्युत्सर्जन कर वोसिरा कर रहना नहीं कल्पता । (ii) साध्वी को ग्राम यावत् (राजधानी) सन्निवेश के बाहर अपनी भुजाओं को ऊपर उठाकर सूर्याभिमुख होकर, एक पैर के बल खडे होकर आतापना लेना नहीं कल्पता । अपितु स्थानक / उपाश्रय के भीतर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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