Book Title: Shraman evam Shramani ke Achar me Bhed Author(s): Padamchand Munot Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 6
________________ 312 जिनवाणी | 10 जनवरी 2011 को दण्डयुक्त पाद प्रोंछन रखना और उसको उपयोग में लेना कल्पता है। (बृहत्कल्पसूत्र) 21. मूत्र के आदान-प्रदान का निषेध साधुओं और साध्वियों को एक दूसरे का मूत्र भयानक रोगों के अतिरिक्त परस्पर गृहीत करना, पीना या उसकी मालिश करना नहीं कल्पता। 22. आचार्य पद देने का कल्प आचार्य पद साध्वी को नहीं दिया जाता। इसके अनेक कारण हैं:- (1) तीर्थंकर भगवान की आज्ञा नहीं है। (2) पुरुष ज्येष्ठ कल्प है। (3) पुरुष में स्त्री से ज्यादा गंभीरता होने के कारण यह प्रशासनिक पद नहीं दिया जाता। (4) विहार-गोचरी आदि अनेक प्रसंगों में साध्वी को अकेला जाना नहीं कल्पता है, जबकि साधु को अकेला जाना कल्पता है, जैसे-गौतम स्वामी। 23. साधु-साध्वियों का वन्दना व्यवहार एक दिन की दीक्षा पर्याय पालने वाला साधु भी सभी साध्वियों से ज्येष्ठ गिना जाता है अतः सभी साध्वियां चाहे उनमें से कोई 60-70 वर्ष या उसके अधिक काल की दीक्षा पर्याय पालन करने वाली हो तो भी उस साधु को वन्दन करती है। संदर्भ ग्रन्थ1. आचारांग सूत्र, भाग 2, अनुवादक- श्री रतनलाल डोसी- श्री अखिल भारतीय सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक ___संघ, जोधपुर, जनवरी-2006 . 2. बृहत्कल्प- अनुवादक एवं विवेचक-प्रो. (डॉ.) छगनलाल शास्त्री एवं डॉ. महेन्द्रकुमार रांकावत, श्री __ अखिल भारतीय सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर-2006 3. दशाश्रुतस्कन्ध-प्रो. (डॉ.) छगनलाल शास्त्री एवं डॉ. महेन्द्रकुमार रांकावत, श्री अखिल भारतीय सुधर्म ____ जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर-2006 4. व्यवहार सूत्र- प्रो. (डॉ.) छगनलाल शास्त्री एवं डॉ. महेन्द्रकुमार रांकावत, श्री अखिल भारतीय सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, जोधपुर-2006 5. विनयबोधिकण- लेखक-विनयमुनि, मणिबेन कीर्तिलाल मेहता, आराधना भवन, कोयम्बटूर, नवम्बर 2006 6. उत्तराध्ययन- आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा.,सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर 7. दशवैकालिक सूत्र- आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा., सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर - 7 न 12, जवाहर नगर, जयपुर-302004 (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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