Book Title: Shraman evam Shramani ke Achar me Bhed
Author(s): Padamchand Munot
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 3
________________ 309 | 10 जनवरी 2011 | 10 जनवरी 2011 जिनवाणी । जिनवाणी रखना कल्पता है, जबकि साधुओं को अन्दर से लिपा हुआ घटीमात्रक (उपर्युक्त पात्र) रखना और उपयोग करना नहीं कल्पता है। (बृहत्कल्प सूत्र) 5.सागारिक की निश्रा में प्रवास करने का विधान निर्ग्रन्थिनियों (साध्वियों) को सागारिक की अनिश्रा-बिना आश्रय के रहना नहीं कल्पता है। उनको सागारिक की निश्रा-आश्रय में रहना कल्पता है। साधुओं को प्रवास में सागारिक की निश्रा-प्रश्रय (आश्रय) अपरिहार्य नहीं है, निश्रा हो तो उत्तम है। 6. सागारिक युक्त स्थान में आवास का विधि निषेध साधु-साध्वियों को सागारिक (शय्यातर)-गृहस्थ के आवास युक्त स्थानक/ उपाश्रय (स्थान) में प्रवास करना नहीं कल्पता है। केवल स्त्री निवास युक्त (स्त्री सागारिक) स्थानक/उपाश्रय में साधुओं का प्रवास वर्जित है, उसी प्रकार केवल पुरुष निवासयुक्त (पुरुष सागारिक) स्थानक/उपाश्रय में साध्वियों का प्रवास वर्जित है। केवल पुरुष निवास युक्त (पुरुष सागारिक) स्थानक/ उपाश्रय में साधुओं का प्रवास कल्पता है और केवल स्त्री निवास युक्त (सागारिक)स्थानक/ उपाश्रय में साध्वियों का प्रवास कल्पता है। (बृहत्कल्प सूत्र) 7.प्रतिबद्धशय्या (स्थानक/उपाश्रय) में प्रवास का विधि-निषेध प्रतिबद्धशय्या (शय्यातर के आवास में लगे हुए (स्थानक/उपाश्रय)में साधुओं का प्रवास कल्पनीय नहीं है। जबकि साध्वियों का प्रतिबद्धशय्या में प्रवास करना कल्पता है। प्रतिबद्ध के दो भेद बताये गए हैं- (1) द्रव्य प्रतिबद्ध, (2) भाव प्रतिबद्ध। भित्तिका आदि के व्यवधान से युक्त आवास द्रव्य-प्रतिबद्ध कहा गया है। भाव प्रतिबद्ध का आशय उस आवास से है, जिससे भावों में विकृति आना आशंकित है। चूर्णिकार ने उसके चार भेद किये हैं- 1. जहाँ गृहवासी स्त्री-पुरुषों का एवं साधु का प्रस्रवण (मूत्रोत्सर्ग) स्थान एक हो। 2. जहाँ घर के लोगों एवं साधुओं के बैठने का स्थान एक ही हो। 3. जहाँ स्त्रियों का रूप सौन्दर्य आदि दृष्टिगोचर होता हो। 4. जहाँ स्त्रियों की भाषा, आभरणों की झंकार तथा काम-विलासिता एवं गोप्य शब्दादिसुनाई पड़ते हों। इन चारों भेदों में सूचित प्रसंग ऐसे हैं, जिनसे मानसिक विचलन आशंकित है। (बृहत्कल्प सूत्र) 8. प्रतिबद्ध मार्ग युक्त स्थानक/उपाश्रय में ठहरने का कल्प-अकल्प जिस स्थानक/ उपाश्रय में जाने का रास्ता गाथापति कुल-गृहस्थ वृन्द के घर के बीचों-बीच होकर हो, उसमें साधुओं का रहना नहीं कल्पता है, जबकि उसमें साध्वियों को प्रवास करना कल्पता है।(बृहत्कल्प सूत्र) 9. विश्रामगृह आदि में ठहराव का विधि-निषेध साध्वियों को आगमनगृह-धर्मशाला आदि में, चारों ओर से खुले घर में, बांस आदि से निर्मित जालीदार घर में, वृक्ष आदि के नीचे या खुले आकाश या केवल चारदीवारी युक्त गृह में ठहरना नहीं कल्पता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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