Book Title: Shraman Tirtha Ka Jain Dharma ki Prabhavana me Avadan
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 6
________________ सार पूर्ण शब्दों में इतना ही कहा जा सकता है कि श्रमणियों ने जिन शासन की प्रभावना में जब से योगदान देना प्रारम्भ किया उसका इतिवृत शब्दशः लिखना इस लघुकाय निबन्ध में सम्भव नहीं है तथापि हमारा विनम्र प्रयास भी उस दिशा में डग भर है। चिंतन - कण दूसरों के काम में हाथ बटाने पर सुख की अनुभूति होती है। यह शरीर एक दिन अवश्य नष्ट होगा, सिर्फ आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व ही शेष रह जाएँगे। अपने को सदा सत्कार्य करने में ही लगाओ। सदाचार ही जीवन का सार है। सहनशक्ति ही अंत में सुखकारी होती है। जीवन का अंतिम सुख त्याग है। त्याग जैन शासन का संदेश है। त्याग धर्म व शांति है, भोग अधर्म व अशांति है। |* जीवन एक वाटिका है, इस वाटिका में सद्गणों के पुष्प लदे हुए हैं। लिए मानव स्वतंत्र है। जीवन अमूल्य मोती है। मोती से जन सामान्य मुग्ध हो जाता है। अतः सद्गण रूपी मोती जीवन में उतरने से सारा संसार प्रफुल्लित हो उठता है।। उपवन में भीनी-भीनी महक आती है पुष्पों की, वैसे ही सच्चाई के मानव में विकास से सारा संसार भीना-भीना महक सकता है। * स्व. श्री चम्पाकुंवर जी म.सा (38) Jain Education International For Private & Personal Use Only

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