Book Title: Shraman Achar Miamnsa
Author(s): Bhagchandra Jain
Publisher: Z_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf

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Page 10
________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ titutiHIRLLLLLLLL (43) प्रायश्चित्तस्वरूप दंड-व्यवस्था प्रायश्चित्तस्वरूप दण्ड-व्यवस्था (44) प्रायश्चित्त प्रवारणा (45) गणिन् की योग्यताएँ महावग्ग में भिक्षु की योग्यताएँ--- आचार, श्रुत, शरीर, वचन, वहुश्रुत, आगतागमो, अम्मधरो, विनय वाचना, मति, प्रयोग, संघ धरो, मातिकाधरो, पण्डितो, व्यत्तो, परिज्ञा / ये अनेक प्रकार से मेधावी, लज्जी कुक्कुच्चको, सिखाकामो। वर्गीकृत (आयारदसाओ) (46) द्वादशानुप्रेक्षा दस अनुस्मृतियाँ (47) चार भावनाएँ ब्रह्मविहार चार (48) मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, अश्रद्धा, आलस, प्रमाद, विक्षेप, संमोह ये अविरति और योग-बन्धके पाँच इन्द्रियाँ कर्माश्रव के कारण / कारण। (46) सम्यक्त्व, व्रतस्थापन, अप्रमाद, पाँच बल-श्रद्धा, अनालस, अप्रमाद, उपशांतमोह, एवं क्षीणमोह संपन्न अविक्षेप और अमोह सम्पन्न / (50) अप्रमाद, धर्मानुप्रेक्षा, वीर्य, सप्तबोध्यंग-स्मृति, धर्म-विचय, वीर्य, प्रमोद, गुप्ति, ध्यान एवं प्रीति, प्रश्रुब्धि, समाधि उपेक्षा युक्त / माध्यस्थभाव युक्त। (51) रत्नत्रय अष्टांगिक मार्ग (52) कर्म उपशम, कर्मक्षय कर्म प्रहाण, कर्मसमुच्छेद (53) शुभ ध्यान में बाधक स्थलों कसिण की खोज में कतिपय विहारों का का त्याग त्याग (54) सम्यग्दर्शन बोधिचित्त (55) सम्यग्ज्ञान प्रज्ञा (56) सम्यक्चारित्र शील और समाधि (57) भेदविज्ञान धर्म-प्रविचय जैन-बौद्ध विनय की यह सामान्य तुलना है। विषय इतना विस्तृत है कि उसे एक अल्पकायिक निबन्ध में समाहित नहीं किया जा सकता। यहाँ मात्र इतना ही कथ्य है कि जैन-बौद्ध विनय परस्पर अधिक दूर नहीं है। उनमें आचारगत समानता काफी है। दोनों की तुलनार्थ दिये गये ये शब्द और विषय अग्रिम अध्ययन के लिए मात्र सांकेतक हैं। .. TIL श्रमण आचार मीमांसा : डॉ० भागचन्द्र जैन | 116 . Real onal www.jaine

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