Book Title: Shraddha aur Samarpan se Milta Hai Guru ka Ashirwad Author(s): Devendramuni Shastri Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 1
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 28 श्रद्धा और समर्पण से मिलता है, गुरु का आशीर्वाद आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म.सा. जो शिष्य गुरु के प्रति पूर्ण निष्ठा से श्रद्धा-समर्पित रहता है, उसे गुरु रहस्यात्मक ज्ञान भी सहज ही प्रदान करने को तत्पर हो जाते हैं। गुरु किस प्रकार शिष्य का कल्याण करने को तत्पर रहते हैं, इसे आचार्यश्री के इस आलेख से जाना जा सकता है। -सम्पादक सद्गुरु की महिमा वशिष्ठ ऋषि जी ने कहा है "गुरुपदेशेन विना नात्मतत्त्वागमो भवेत्।" -योगवाशिष्ठ आत्मा में अनन्त ज्ञान है, अनन्त शक्तियाँ हैं, परन्तु इस ज्ञान और शक्ति को जागृत करने का मार्ग कौन बतायेगा? उत्तर है- गुरु! भवन पर ताला लगा है। चाबी भी आपके हाथ में है, किन्तु चाबी घुमाने का ज्ञान भी तो होना चाहिए। सीधी चाबी घुमाने से ताला खुल जाता है, तो वही चाबी उल्टी घुमाने से ताला बन्द हो जाता है। चाबी घुमाने की कला गुरु से ही प्राप्त होती है। जैनाचार्यों ने कहा है "मेढी आलंबणं खंभे विट्ठी जाणं सुउत्तमे। सूरिजे होइ गच्छस्स तम्हा तंतुपरिक्खए ||" -गच्छाचार, प्रकीर्णक8 जैसे खेत-खलिहान में बैल घूमता है तो बीच में उसके एक लकड़ी का खम्भा बना होता है, जिसके सहारे बैल घूमता है, उसे मेढी' कहते हैं। गुरु जीवनरूपी खलिहान की मेढी है। गुरु आलम्बन है, सहारा है। वृक्ष के आश्रय या आलम्बन से लताएँ ऊपर चढ़ती हैं। इसी प्रकार गुरु का आलम्बन पाकर शिष्य साधना रूपी वृक्ष पर चढ़ता है। भवन या महल का आधार उसका स्तम्भ है । खम्भे या 'पिलर' हैं । स्तम्भ के सहारे दसबीस मंजिल की बिल्डिंग खड़ी हो सकती है । गुरु साधनारूपी महल के 'पिलर' या स्तम्भ हैं। गुरु साधना की दिव्य दृष्टि देते हैं । चलने वालों के पास यदि दृष्टि है, आँखें खुली हैं तो वह अपनी मंजिल को पा लेगा। रास्ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6